प्रस्तुत है यज्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/10/2021 का सदाचार संप्रेषण
वर्तमान धरातल के साथ संपूर्ण परिवेश, पर्यावरण, प्रकृति,परिस्थितियां हैं और उनके प्रभाव हमें प्रभावित कर रहे हैं लेकिन ये परमात्मा के द्वारा ही उत्पन्न परिस्थितियां हैं कि हम लोग एक विचित्र स्थिति से जोड़ दिये गये हैं और इसीलिए तो नित्य प्रवचन, नित्य श्रवण, नित्य चिन्तन, नित्य मनन और नित्य सांसारिक संघर्षों से संघर्ष होता है और इन सबके पश्चात् पुनः पुनः नये जीवन के उत्साह के लिए उद्धित हुआ जाता है l
परमात्मा अपने अंशावतारों में प्रकट होता है l
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।
संपूर्ण सृष्टि ही ईश्वरमय है जिनमें एक कला है वह भी ईश्वर का अंश हैं यानि ईश्वर हैं l
तैत्तिरीय उपनिषद् में सातवां अनुवाक इस प्रकार है
पृथिव्यन्तरिक्षं द्यौर्दिशोऽवान्तरदिशाः ।
अग्निर्वायुरादित्यश्चन्द्रमा नक्षत्राणि ।
आप ओषधयो वनस्पतय आकाश आत्मा । इत्यधिभूतम् ।
अथाध्यात्मम् । प्राणो व्यानोऽपान उदानः समानः ।
चक्षुः श्रोत्रं मनो वाक् त्वक् ।
चर्ममांस स्नावास्थि मज्जा ।
एतदधिविधाय ऋषिरवोचत् ।
पाङ्क्तं वा इदंसर्वम् ।
पाङ्क्तेनैव पाङ्क्तग् स्पृणोतीति ॥ १॥ इति सप्तमोऽनुवाकः ॥
सातवां अनुवाक
इस अनुवाक में 'पांच तत्त्वों' का विविध पंक्तियों में उल्लेख किया है और उन्हें एक-दूसरे का पूरक माना है।
लोक पंक्ति— पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाएं और अवान्तर दिशाएं।
नक्षत्र पंक्ति— अग्नि, वायु, आदित्य, चन्द्रमा और समस्त नक्षत्र।
आधिभौतिक पंक्ति— जल, औषधियां, वनस्पतियां, आकाश और आत्मा।
अध्यात्मिक पंक्ति— प्राण, व्यान, अपान, उदान और समान।
इन्द्रियों की पंक्ति— चक्षु, श्रोत्र, मन, वाणी और त्वचा।
शारीरिक पंक्ति— चर्म, मांस, नाड़ी, हड्डी और मज्जा।
गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुत कुछ समझाया है आचार्यजी का परामर्श है कि दूसरे अध्याय में 45 वें से 53 वें छन्द तक का अध्ययन करें
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि।।2.53।।
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
वैदिक ज्ञान काव्यमयी भाषा में है और इसे decode करने की आवश्यकता है तभी समझ में आयेगा द्यौ अन्तरिक्ष आकाश अलग अलग है और इन सबको समझने में बहुत समय की आवश्यकता है l
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