26.12.21

आज दिनांक 26/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  श्रितसत्त्व आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/12/2021 (पौष कृष्ण सप्तमी )   

  { स्वामी विवेकानन्द द्वारा त्रिदिवसीय ध्यान का द्वितीय दिन (26 दिसंबर 1892 )

कन्याकुमारी में समुद्र के  मध्य में स्थित चट्टान पर बैठ कर स्वामी विवेकानन्द ने  25 से 27 दिसंबर तक ध्यान लगाया था । }

का सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


https://t.me/prav353




आज युग भारती बैच 96 का रजत जयन्ती सम्मान समारोह आयोजित कर रही है। आचार्य जी कार्यक्रम से पूर्व विद्यालय के सामने स्थित मलय भैया (बैच 1982) के चिकित्सालय में उपस्थित रहेंगे

मिलना -जुलना,उत्साहित होना,बातचीत करना मनुष्य जीवन का बहुत ही आनन्दमय पक्ष है l किसी से मिलना बहुत अच्छा लगता है किसी से खराब ये सब भाव यह बताते हैं कि हम केवल इतने ही शरीर से जुड़े नहीं है

कभी कोई कहता है ऐसा लगता है पूर्वजन्म में हम आपके कोई थे l

यह थे वाला भाव एक दूसरे से जोड़ता हटाता रहता है

भाव और भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व के आभूषण हैं भाव और भाषा के आधार पर आपके संबन्ध बनते बिगड़ते हैं

संस्कार इसी को कहते हैं

हमारे कार्य व्यवहार का प्रभाव अगली पीढ़ी पर परिलक्षित होता है


भावुक पिता को अपने वृद्धबच्चे बच्चे ही दिखाई पड़ते हैं

यह भाव अपने ग्रंथों में कई स्थानों पर वर्णित है जिनका हमें अध्ययन करना चाहिए श्रेष्ठ लेखक विचारक के लेख पढ़ें भाव को भावनामय होकर समझें इन विचारों के साथ हम अपने संगठन को सुदृढ़ करते हैं क्योंकि


 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


हम जीव और ब्रह्म के बीच की सीढ़ी हैं हम भोजन कर रहे हैं वो भी ब्रह्म है मैं भी ब्रह्म हूं क्रिया भी ब्रह्ममय है


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


हम मनुष्यत्व को ही प्राप्त करें 


 आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पषुभिर्निराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ।।


आचार्य जी ने स्वामी विवेकानन्द का एक प्रसंग बताया जिसमें वो भाव में व्यवधान आने पर किस प्रकार खीझे

इन सारे रहस्यों को समझने के लिए स्वाध्याय करना चाहिए लेकिन कर्महीन बनकर नहीं

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष ही हमारा लक्ष्य है


इन सब भावों के साथ हम आज के कार्यक्रम में भाग लें