हर कर को गांडीव सुलभ है,हर मन को उत्साह ।
किंतु शर्त यह आह न किंचित, हर पल निकले वाह ।।
✍️ओम शंकर
प्रस्तुत है अध्यात्म -प्रशत्त्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/01/2022
का सदाचार संप्रेषण
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कथन और श्रवण संस्कार का एक रूप है और इस पद्धति से हमारे देश में मानव जीवन के लिए संस्कार का एक मार्ग खोला गया
मनुष्य मनुष्य बने इसके लिए ज्ञान का उद्भव सबसे पहले अपने देश में हुआ
कोटि-कोटि कंठों से निकली आज यही स्वर धारा है
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।
जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल सृजन के स्वप्न घने,
जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने,
जिस क्षण नभ में तारे छिटके, जिस दिन सूरज-चाँद बने,
तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है!
भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है ! I
(बाल कृष्ण नवीन)
विकार संसार में आते हैं अपना देश भी इससे अछूता नहीं रह सकता इसलिये बहुत व्याकुल नहीं होना चाहिये
शङ्कराचार्य केवलाद्वैत, रामानुज विशिष्टाद्वैत, निम्बार्क द्वैताद्वैत, मधवाचार्य द्वैत, वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैत
आदि भिन्न भिन्न मत हैं इनके समय में भी परिस्थितियां विषम थीं
प्रतिकूल परिस्थिति में मनुष्य के पुरुषार्थ -जागरण के असंख्य उदाहरण भारतवर्ष में हर समय मिल जायेंगे
आचार्य जी ने चार युगों से संबन्धित अपनी रची एक कविता सुनाई
हमने पूरी वसुधा को अपना परिवार......
हमारे विचार भी इसी तरह जब लिपिबद्ध हो जाते हैं और हम स्वयं पढ़ते हैं तो लगता है किसने प्रेरित किया था
कौन अन्दर विद्यमान है अहं ब्रह्मास्मि
उपासना भाव में रहने का प्रयास नित्य करें किसी भी समय करें
आज की परिस्थितियों को देखकर अध्यात्म के साथ पुरुषार्थ शौर्यपूर्ण पराक्रम की आवश्यकता है ही
समय पर पौरुष का प्रकटीकरण होना चाहिये
रुई भारत में बनती थी लेकिन कपड़ा इंगलैंड में बनता था और कंट्रोल से मिलता था इस तरह के संकटों से भारत गुजरा है
लेकिन अब हम उस संकट काल से निकल आये हैं
इसलिये निराशा की अभिव्यक्ति अब भी न करें
यह सदाचार वेला हमें सिखाती है कि हम जाग्रत हों, परिस्थितियों से जूझें,आत्मशक्ति की अनुभूति भी करें प्रयोग भी करें
इसके लिये खानपान संयम नियम देखें
परमात्मा ने हमारा शरीर अनुकूलन स्थापित करने वाला बनाया है मनुष्यत्व की अनुभूति करें दुर्भाग्यशाली न बनें