यह संसार बहुत अद्भुत है इसकी अद्भुतता का अनुभव करते हुए जिसने इस अद्भुत संसार की रचना की है हमारे अन्दर उसके प्रति यदि जिज्ञासा है तो हम मोक्ष की अद्भुत अवस्था पाने की ओर चल देते हैं
प्रस्तुत है परिरक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/02/2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in
https://t.me/prav353
आचार्य जी ने आज सबसे पहले लोकतन्त्र के प्रपंच की चर्चा की
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
तो हमें राजनीति धर्मनीति समाजनीति और व्यक्तिनीति में यही लक्ष्य दिखाई देता है
दूसरी ओर समाज में विकार वाले विचार भी घूम रहे हैं
इन विकारों में धर्म इतना उलझ गया कि भले लोग भी धर्म से बैर भाव रखते हैं धर्म अर्थात् कर्तव्य का बोध तो हमें होना ही चाहिये
हमें आत्म चिन्तन करते हुए यह अनुभव होना चाहिये कि हम विशेष हैं प्रवाह -पतित नहीं हैं
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥
चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं॥
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी॥2॥
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥
सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥4॥
का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि बीज कभी मरता नहीं है यह श्रुति सिद्धान्त है
या तो अच्छाई विकसित होने लगती है या बुराई विकसित होने लगती है
यदि हमारा उठना जागना और लक्ष्य सुस्पष्ट हैं तो हमें आनन्दमय भावों में रहते हुए संसार सागर को तैरने में पार करने में आनन्द का अनुभव होगा ही