24.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 हितं सन्निहितं तत् साहित्यम् अर्थात् साहित्य वही है, जिसमें मानव का हित सन्निहित हो। पाश्चात्य विद्वान विलियम हेनरी हडसन के अनुसार - ‘साहित्य मूलतः भाषा के माध्यम से जीवन की अभिव्यक्ति है'


प्रस्तुत है गुपिल आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/02/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in


https://t.me/prav353


चुनाव की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा पार्टी कोई भी हो इन तथाकथित जनप्रतिनिधियों की भावनाएं पवित्र नहीं हैं और वे केवल धन और यश की ही कामना करते हैं

यशस्विता से दूर होना बहुत कठिन तप है अच्छे अच्छे ऋषि ढह जाते हैं

यश सभी को अच्छा लगता है ऐसे महापुरुष भी हुए हैं जिनको यश सुनने की चाह नहीं रही जैसे दीनदयाल जी, गुरु जी, अशोक सिंघल जी


आचार्य जी चाहते हैं कि हम ढपोरशंखी नागरिक न बनें जिनका चिन्तनपक्ष बहुत कमजोर होता है

इसके लिये आचार्य जी ने भागवत से एक छंद सुनाया


त्वन्माययाद्धा जन ईश खण्डितो यदन्यदाशास्त ऋतात्मनोऽबुधः ।

यथा चरेद्बालहितं पिता स्वयं तथा त्वमेवार्हसि नः समीहितुम् ॥

4/20/31

.और इसकी विस्तृत व्याख्या की कि हमारे हित का क्या है 

आपने बिस्कुट से संबन्धित एक रोचक प्रसंग भी सुनाया

और बालकांड से 


जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार।

सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार॥ 132॥

की व्याख्या की 

(नारद जी जब अपने लिये सुन्दर रूप मांगने गये)


संसार के हर क्षेत्र में फैले विकारों को अपने विचारों से कैसे दूर कर सकते हैं अपने को भी शुद्ध करते हुए इसका प्रयास करें


हर क्षेत्र में सदाचार की आवश्यकता है


स्वयं से लेकर अपने परिवेश तक प्रयासपूर्वक सत् आचरण की चेष्टा करें तो हमारे विचार उदात्त और सुस्पष्ट होंगे

अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन डायरी लेखन आदि करें