महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था।
प्रस्तुत है सुतुस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/02/2022
का सदाचार संप्रेषण
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आचार्य जी ने रशिया यूक्रेन युद्ध की चर्चा करते हुए बताया कि मनुष्य का स्वभाव है कि उसे भ्रम बना रहता है कि वह अनन्तकाल तक सुख का उपभोग कर सकता है और भय यह सताता है कि ऐसा होगा या नहीं
इसी भ्रम में वो ऐसे दुर्धर्ष काम कर जाता है कि यदि उन पर वह चिन्तन करे तो पश्चात्ताप के आंसू ही बहायेगा
हम अमरत्व की कल्पना और चिन्तन करते हुए बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं
हमारा वैदिक पौराणिक आर्ष साहित्य उच्च कोटि का है
आचार्य जी ने एम ए कक्षा में विशेष कवि के रूप में सूरदास को चुना
चित्रकूट के स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज की तरह विचक्षुस् होने के बाद भी सूरदास अद्भुत प्रतिभाशाली थे
वो निर्गुण ब्रह्म की उपासना करते थे बहुत अच्छे गायक थे उनके समकालीन (अकबर का काल )रायपुर के निकट चम्पारण्य में जन्मे भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता वल्लभाचार्य कालान्तर में उनके गुरु हो गये वल्लभाचार्य के कहने पर सूरदास नित्य एक नया पद आरती के समय गाते थे
वल्लभाचार्य का प्रादुर्भाव विक्रम संवत् 1535, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्रीलक्ष्मणभट्टजी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से हुआ
उन्हें वैश्वानरावतार (अग्नि का अवतार) कहा गया है।
विक्रम संवत् 1587, आषाढ शुक्ल तृतीया (सन 1531) को उन्होंने अलौकिक रीति से इहलीला संवरण कर सदेह प्रयाण किया, जिसे 'आसुरव्यामोह लीला' कहा जाता है। वैष्णव समुदाय उनका चिरऋणी है।
निम्नांकित उनके ग्रंथों को षोडश ग्रंथ के नाम से जाना जाता है
१. यमुनाष्टक
२. बालबोध
३. सिद्धान्त मुक्तावली
४. पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद
५. सिद्धान्तरहस्य
६. नवरत्नस्तोत्र
७. अन्तःकरणप्रबोध
८. विवेकधैर्याश्रय
९. श्रीकृष्णाश्रय
१०. चतुःश्लोकी
११. भक्तिवर्धिनी
१२. जलभेद
१३. पंचपद्यानि
१४. संन्यासनिर्णय
१५. निरोधलक्षण
१६. सेवाफल
आपका शुद्धाद्वैत का प्रतिपादक प्रधान दार्शनिक ग्रन्थ है - अणुभाष्य [ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा]
(https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF से साभार )
हमें स्थूल पढ़ाया गया जिसके कारण हम इस अद्भुत साहित्य से दूर होते गये
अब समय है कि इस दिशा में भी हम प्रयासरत हों