अब तो भूयोविद्य आचार्य श्री ओमशङ्कर जी द्वारा आम्नात सदाचार संप्रेषणों को सुनने के लिए श्रोताओं में अहंप्रथमिका का भाव जाग्रत हो गया है l राष्ट्र -हित के लिए, समाज -हित के लिए और व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए हम लोगों का दायित्व है कि इन संप्रेषणों को सुनने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करें l निःसंदेह संप्रेषणावतति अत्यावश्यक है l तो और न देर करते हुए प्रस्तुत है आज दिनाङ्क 20/09/2021 की सङ्गणिका
प्रश्नोपनिषद् में आचार्य जी ने
अथ कबन्धी कात्यायन उपेत्य पप्रच्छ भगवन् कुतो ह वा इमाः प्रजाः प्रजायन्त इति ॥
आदित्यो ह वै प्राणो रयिरेव चन्द्रमाः रयिर्वा एतत् सर्वं यन्मूर्तं चामूर्तं च तस्मान्मूर्तिरेव रयिः ॥
स एष वैश्वानरो विश्वरुपः प्राणोऽग्निरुदयते।
तदेतद् ऋचाऽभ्युक्तम् ॥
विश्वरूपं हरिणं जातवेदसं परायणं ज्योतिरेकं तपन्तम्।
सहस्ररश्मिः शतधा वर्तमानः प्राणः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः ॥
की व्याख्या की
परमात्मा का प्रतिनिधि प्रत्यक्ष देवता सूर्य प्राणदाता है और परमात्मा का प्रतिनिधि दूसरा प्रत्यक्ष देवता चन्द्रमा (रयि ) स्थूल का निर्माण करता है l
व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार ही प्रकटीकरण करता है l
परमात्मा की विद्यमानता की अनुभूति होती रहे यह प्रार्थना करते रहें l विद्वान लोग संगठित हों l अपने जीवन को कल्याणमय बनायें l
आचार्य जी का आज जन्मदिन भी है l
इसके अतिरिक्त बैरिस्टर साहब क्या बांधते थे? भैया श्री अरविन्द तिवारी जी ने कक्षा तीन में कौन सा प्रश्न पूछा था? अबरी क्या है?
आदि जानने के लिए सुनें