अकृत्वा परसन्तापम् अगत्वा खलनम्रताम् |
अनुत्सृज्य सतां मार्गं यत्स्वल्पमपि तद्बहु ||
एक बात तो है कि निसर्गसिद्ध प्रतिभा के धनी आचार्य श्री ओम शङ्कर जी द्वारा प्रोक्त अम्भ -पत्सल से समापन्न नैत्यकाभाषण में कुछ तो है अन्यथा इसकी इतनी चर्चा ही क्यों हो
आचार्य जी की वाणी से अमृतावृष्टि हम लोगों का सौभाग्य है l
सूरज प्राणिक ऊर्जा, चंदा जग-व्यवहार ।
परमेश्वर की सृष्टि का, यह ही रूपाकार ।।
कल आचार्य जी ने बताया था कि सूर्य प्राणदाता है और चन्द्रमा स्थूल का निर्माण करता है आज दिनांक 21/09/2021 को अन्य विषयों के साथ पुनः हम प्रश्नोपनिषद् में प्रवेश करने जा रहे हैं
आचार्य जी ने
संवत्सरो वै प्रजापतिः स्तस्यायने दक्षिणञ्चोत्तरं च।
तद्ये ह वै तदिष्टापूर्ते कृतमित्युपासते ते चान्द्रमसमेव लोकमभिजयन्ते त एव पुनरावर्तन्ते।
तस्मादेत ऋषयः प्रजाकामा दक्षिणं प्रतिपद्यन्ते। एष ह वै रयिर्यः पितृयाणः ॥
की व्याख्या की
और बताया कि अन्य श्लोकों के साथ मनोयोगपूर्वक
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै
र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।गीता
आनन्द आचार्य जी ने अपने विद्यालय में लिखा था l
कल आचार्य जी का जन्मदिन था इस अवसर पर समय निकालकर भावों को लिए हुए योजनापूर्वक कुछ लोग उनसे मिले l
प्रतिष्ठित संत नरेन्द्र गिरि की कल रहस्यमय मृत्यु हो गई l
पवित्र जीवन जीने वाले सैनिक के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया? जानने के लिए सुनें