14.11.21

दिनांक 14/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है उपस्थितवक्ता आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

बहुत दिन बाद लखनऊ युगभारती की आज बैठक है

हम सब लोगों के मन में बहुत सी कल्पनाएं रहती हैं क्योंकि हम सब आन्तरिक रूप से एक हैं बाह्य स्वरूप अलग अलग हैं 

भाव और रूपमय संसार भाव से एक,रूप से अनेक है

भावरूप, नामरूप,तत्त्वरूप, सत्त्वरूप अलग अलग रूप हैं और जो अरूप है वह


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥

आचार्य जी ने नीरज अत्रि और नीलेश नीलकंठ ओक की चर्चा की

ये कुछ लोग अपने वैचारिक क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं यह इस समय की अनिवार्य आवश्यकता है क्यों कि इस समय भीषण वैचारिक संघर्ष चल रहा है और हमारी आर्ष परम्परा,जिसमें वैदिक ज्ञान औपनिषदिक ज्ञान पौराणिक ज्ञान है, शान्ति प्रदान करेगी ही जिससे आनन्ददायक वातावरण निर्मित होगा

ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥


इस उथल पुथल वाले संघर्ष को पार करके निश्चित रूप से ही प्रकाश का प्रसार करेंगे ऐसा विश्वास मन में रखके हममें से प्रत्येक को अपने अपने स्तर से प्रयास करना चाहिए

अपनापन हमारे गांव की हमारे देश की थाती रहा है इस थाती को हमारे शौर्यविहीन अध्यात्म ने दूर किया है

आचार्य जी ने

तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली के 12 वें अनुवाक से

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।

के नित्य पाठ का परामर्श दिया

जिसको हम शिक्षित बनाने चले हैं वह इस लोक और परलोक को भलीभांति समझ कर जब शिक्षा प्राप्त करेगा तो जो भी कार्य करेगा तो उस कार्य को करने में न उसको दम्भ होगा न भय न भ्रम न उथल पुथल न ईर्ष्या न द्वेष होगा

आचार्य जी ने माननीय गोखले जी(जिन्होंने बैरिस्टर साहब को स्वयंसेवक बनाया था )से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया