17.11.21

दिनांक 17/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शङ्कर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

इस समय चारों तरफ का वायुमण्डल व्यापारमय हो गया है व्यापार तो उत्तम चीज है लेकिन उसमें विकृति भरने से सारा काला व्यापार हो गया है विचारों को विकृत करके परोसा जा रहा है और वह भी व्यापारिक ढंग से

हमारा काम अपने अपने काम करते हुए विचारों को परिष्कृत करने का है   और परिष्कृत विचारों को बहुत स्थानों में प्रवेश कराने की आवश्यकता है

वैचारिक क्षेत्र में इस समय जो उथल पुथल मची है कि ठीक  क्या है समझदार लोग भी उससे घिरे  हैं क्योंकि वे भी राजनीति का शिकार हो गए हैं 


राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥

बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥


राजनीति चारों ओर व्याप्त है और वह भी अनीतिमय l 

राजनीति में एक तूफान चला हुआ है कि  भारत में लोकतन्त्र पश्चिम की देन है जब कि ऐसा नहीं है

लोकतन्त्र भारतवर्ष की पद्धति है जब भी राजा लोकव्यवहार से विरत हुआ है  उसे अपदस्थ किया गया है l

आचार्य जी जब BA में अध्ययनरत थे तो 

रामास्वामी पेरियार के आन्दोलन से जुड़े एक व्यक्ति ने एक पुस्तक आचार्य जी को दी जिसमें माता सीता के बारे में जो लिखा था उससे आचार्य जी बहुत आहत हुए

इस तरह का बहुत सारा गलत साहित्य अभी भी बांटा जा रहा है

मनु लिखते हैं

यस्मिन् देशे निषीदन्ति विप्रा वेदविदस्त्रयः । राज्ञश्चाधिकृतो विद्वान् ब्रह्मणस्तां सभां विदुः ॥११॥

आचार्य जी ने इसमें आये शब्द सभा की व्याख्या की देखने वाली बात है कि 

यह कितने पहले लिखा गया है तो फिर लोकतन्त्र पश्चिम की देन कैसे हो गया