14.12.21

दिनांक 14/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ससम्पद् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/12/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी  हम लोगों से भावनात्मक रूप से संपर्क करते रहें और हम लोगों का अधिक से अधिक मार्गदर्शन करें स्थूल से सूक्ष्म की ओर स्वयं चलते हुए हमें भी उस ओर उन्मुख करें यह उनका प्रयास रहता है

स्थूल और सूक्ष्म के संयोजन से हम आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन बहुत अधिक तात्त्विक चिन्तन और मनन का अभ्यास नहीं है तो हम परेशान होते हैं

हमारी प्राचीन परम्परा बहुत आश्वस्तिपूर्ण थी लेकिन अब ऐसा नहीं है

आचार्य जी से बहुत लोग अपनी समस्याएं सुलझाने का प्रयास करते हैं

संसार-सागर बहुत विचित्र है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को  पुरुषार्थ साधना संयम करना पड़ेगा

इसमें आकर्षण भी हैं और भय भी है सागर को रत्नाकर भी कहा जाता है इसके रत्नों में चमक और आकर्षण है इन रत्नों का आदान -प्रदान मूल्य से होता है फिर इन रत्नों से आकर्षण धीरे धीरे कम होने लगता है यह संसार का सत्य है

पञ्चप्राणों ( प्राण अपान उदान समान व्यान )की उपनिषदों अरण्यकों आदि में बहुत चर्चा है ये सब सामञ्जस्यपूर्ण ढंग से चलते रहें तो जीवन उत्साहपूर्वक चलता रहता है


कभी हमारी सांसारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए आचार्य जी को व्यावहारिक होना पड़ता है और कभी आचार्य जी को तात्त्विक होना पड़ता है जब उन्हें लगता है कि हम बड़े हो गए हैं और अब हमें तत्त्व को जानने की आवश्यकता है

आचार्य जी को यह सब अब अच्छा लगने लगा है क्योंकि इसका उन्हें अभ्यास हो गया है

संसार में जीवन जीने की हमारी शैली क्या हो इस पर इस सदाचार वेला में विचार होता है हमें तत्त्व की भी जानकारी हो और सत्य की भी

इस तत्त्व और सत्य का संयोजन हम तब ही कर सकते हैं जब हम अभ्यास करेंगे

हमें इस क्षरणशील संसार में रहते हुए संसार के साथ सामञ्जस्य स्थापित करना और अपने शौर्य पराक्रम  का उपयोग भी करना चाहिए