15.12.21

 प्रस्तुत है मैधावकशस्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/12/2021 का सदाचार संप्रेषण जिसे आचार्य जी ने

 भैया अरविन्द तिवारी जी( बैच 1978 हाई स्कूल )के आवास (लखनऊ ) से प्रेषित किया


कल आचार्य जी न्यायमूर्ति श्री सुरेश गुप्त (1975 बैच) जी के सुपुत्र के मांगलिक कार्यक्रम में  सम्मिलित हुए थे

भैया मनीष कृष्ण जी के प्रश्न

एकात्म मानव दर्शन क्या है? का आचार्य जी ने बहुत सरल ढंग से उत्तर दिया

इसके लिए आचार्य जी ने पं सूर्यदत्त उपाध्याय (DIOS ) और बैरिस्टर साहब की त्रिभुज से संबन्धित प्रसंग की भी चर्चा की जिसके माध्यम से किसी प्रश्न का उत्तर सरल कैसे दिया जाए यह बताया

मानव इस संपूर्ण सृष्टि के रहस्य का आधार है आधेय से आधार तक की यात्रा करने का एक सूत्र है

एकात्म मानव दर्शन की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया 

मनुष्य यदि परमात्मा का प्रतिनिधि है तो संपूर्ण जीवात्माओं के सामञ्जस्य समन्वय का उसका कार्य है और यदि उसका अंश है तो जो वह विराट् रूप में करता है यह छोटे में करता है

परमात्मा का संदेश है कि यह सृष्टि एक है इसके वैविध्य के सामञ्जस्य का उत्तरदायित्व मनुष्य का है पं दीनदयाल जी के अनुसार व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से परमेष्टि तक संपूर्ण मानव-जाति अन्योन्याश्रित भाव से एक-दूसरे से जुड़ी है।

मनुष्य को मनुष्यत्व प्राप्त करने के लिए उसको संस्कार अर्जित करने होते हैं या उसे कहीं से प्राप्त हो जाएं छोटे से लेकर बड़े तक सबके द्वारा एक दूसरे का आदर सम्मान हो  ये सब  मनुष्य करता है इसीलिए मनुष्य एकात्मकता का प्रतीक है और यह  दीनदयाल जी ने उस समय प्रस्तुत किया जब मार्क्सवाद का बोलबाला था

समता और ममता का सामञ्जस्य ही एकात्म मानववाद की आधारभूमि है

दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी (10 नवम्बर 1920 – 14 अक्टूबर 2004) ने एकात्म मानववाद का कई खंडों में प्रस्तुतिकरण किया है

मनुष्य के अन्दर मनुष्यत्व है तो यही एकात्म मानव दर्शन है

>