प्रस्तुत है ध्यानयोगिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/12/2021 का सदाचार संप्रेषण
सहजता को शक्ति, तत्त्व,भाव, विचार, क्रिया, व्यापार कहीं भी जोड़ सकते हैं अभ्यास होने पर क्रिया, व्यापार सब सहज लगने लगते हैं
सहजता भी एक प्रकार का योग है
आकस्मिक संकट के समय भी सहजता बनी रहे उसी का सिद्धान्त गीता में है
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
अपने वैदिक ज्ञान में आध्यात्मिक आधिदैविक आधिभौतिक तीनों का सन्निवेश है संसार क्या है सत्य क्या है और यह क्रिया चलती कैसी है
क्योंकि हमारी शिक्षा इस प्रकार की नहीं हुई है इसलिए हम इसे समझ नहीं पाते हैं और इसी कारण परेशान भी होते हैं
आत्मस्थ होकर सोचें तो इन सारी शक्तियों का स्रोत हमारे अन्दर ही विद्यमान है लेकिन हम उनको पहचानते नहीं
क्योंकि हम भ्रम और भय से संयुत होकर शिक्षा के साथ अन्याय कर रहे हैं तो अपने साथ भी अन्याय कर रहे हैं पद और प्रतिष्ठा की अन्धी दौड़ ने मनुष्य को एकांगी बना दिया
आधिभौतिक में मनुष्य लिप्त हो गया लेकिन आध्यात्मिक और आधिदैविक का भाव उसे विस्मृत हो गया
तत्त्वज्ञ स्वर्ण और मृदा को एक जैसा देखता है
गीता में
सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ।
अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति।।18.36।।
हे अर्जुन! अब तुम मुझसे तीन प्रकार के सुखों के संबंध में सुनो जिनसे देहधारी आत्मा आनन्द प्राप्त करती है और सभी दुःखों के अंत तक भी पहुँच सकती है।
हमारे अन्दर से आवाज आये तो बड़ी से बड़ी चीज को हम त्याग सकते हैं
जितने क्षण आधिभौतिकता नश्वर लगने लगती है तो हमारे अन्दर का भाव परिवर्तित होने लगता है
श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियं आत्मनः । एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् ।
वेद स्मृति सदाचार आत्मतुष्टि गम्भीर विषय हैं लेकिन व्यावहारिक जीवन में इन तात्त्विक गम्भीर विषयों की समीक्षा स्वयं करने लग जाएं तो हमारा शिक्षकत्व सफल हो जाता है
भैया दिनेश प्रताप जी (बैच 1991) से संबन्धित क्या बात थी, शहीद पथ पर जाम में कौन फंस गया था आदि जानने के लिए सुनें