28.12.21

दिनांक 28/12/2021 (पौष कृष्ण नवमी ) का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  अर्घ्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/12/2021 (पौष कृष्ण नवमी )   का सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


https://t.me/prav353


आज कल राम कथाओं पर बहुत लोग चर्चा करते हैं कुछ तो बहुत प्रभावशाली होती हैं 

राम एक हैं देखने की दृष्टि विविध है जैसी दृष्टि होती है वैसी ही सृष्टि हो जाया करती है हम इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उसी प्रभाव से दूसरे को प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं लेकिन हमें जितना अच्छा लग रहा है दूसरे को भी उतना ही अच्छा लगे यह आवश्यक नहीं

यही रुचियों का वैविध्य है


बाल कांड से धनुष -यज्ञ का प्रसंग आचार्य जी ने बहुत अच्छे ढंग से बताने का प्रयास यहां किया है

कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि।

उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥ 240॥


राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥

गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥


राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥

जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥


देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥

डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥




रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट काल सम देखा।

पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नर भूषन लोचन सुखदायी॥


कवि का कौशल यहां दिखाई दे रहा है कि विद्वानों ने देखा तो उन्हें कैसा लगा इसी तरह भक्तों को योगियों को कैसा लगा 

इसमें मनोविज्ञान भी है

संसार को संसार की दृष्टि से देखना कठिन काम है लोग अपनी दृष्टि से देखते हैं लेकिन यदि अपनी दृष्टि समन्वयात्मक है कि शरीर क्षरणशील है मरणशील है लेकिन कर्म का आधार भी है तो यह सही बात है,शरीर के लिए दुराग्रह भी नहीं बहुत व्याकुलता भी नहीं


यदि हम समझें कि हम अलग हैं हमारा शरीर अलग है तो भी काम नहीं बनेगा और हम समझें कि हम शरीर ही हैं तब भी काम नहीं बनेगा

हमें समझना है कि यह हमारा शरीर है

नित्य शरीर का ध्यान आवश्यक है उचित समय पर जागरण आवश्यक है ध्यान धारणा भी करें

आचार्य जी चाहते हैं कि यह भाव विचार हम सब में पनपे हम एक दूसरे की सहायता करें  स्वाध्याय भी करें और यशस्विता प्राप्त करें