29.12.21

विनीतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  विनीतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/12/2021   का सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


https://t.me/prav353


शब्द क्या है?

किसी विचारक ने कहा

 सब तरह के दृश्य पदार्थ कल्पना अथवा भावों या विचारों की प्रतिच्छाया या प्रतिबिम्ब ही शब्द है

शब्द एक बहुत बड़ा आधार है  शब्द के अभाव में ज्ञान का स्वयंप्रकाशत्व लुप्त हो जाता है

ऋषियों ने शब्द का बहुत महत्त्व दर्शाया है  प्रणव ॐ आदि स्वर और शब्द दोनों  है


ब्रह्म के मन में इच्छा आई, विस्फोट हुआ और स्वर निकला   ॐ

ऋषि भर्तृहरि ने शब्दाद्वैत का प्रवर्तन कर दिया

नाथ संप्रदाय में भी शब्द की उपासना की गई है राधास्वामी मत में भी शब्द (सबद )की उपासना है

इसी तरह कबीर भी शब्द पर बहुत जोर देते दिखे हैं

हम लोगों को एक दूसरे पर जो विश्वास है उसी कारण हम एक दूसरे के शब्द सुनते हैं यह शब्दमय संसार हमारे आसपास प्रसरित हो रहा है यह भगवान् की कृपा है

इन शब्दों के आधार पर हम आनन्द भी ले सकते हैं और व्यवहार भी कर सकते हैं

सीमा पर ललकार हो या स्वर में बंधा राग हो दोनों में रोमांच है


विवाह के समय भगवान् राम के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार से मानस में है 

राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए।।

गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा।।


राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे।।

जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।

देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा।।

डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी।।

रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा।।

पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई।।


दोहा/सोरठा

नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप।

जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप।।241।।


बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥

जनक जाति अवलोकहिं कैसें। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें॥

सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति बखानी॥

जोगिन्ह परम तत्त्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा॥

हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख दाता॥

रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया॥



मानस के प्रसंग बहुत प्रभाव डालते हैं आचार्य जी चाहते हैं हमें भी पहले अनुभूति प्राप्त हो फिर अभिव्यक्ति प्राप्त करें


तुलसीदास के जीवन, परिस्थितियां, भाव, भाषा,भक्ति और उस समय के परिवेश पर हम लोग विचार करें कि उस समय कितना भीषण समय था ऐसे कठिन समय में जिस साहित्य का उन्होंने सृजन किया तो यह परमात्मा की ही कृपा है

अपनी बेचारगी इस तरह की सदाचार वेला से दूर करने का हम लोग प्रयास करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रमेशभाई ओझा, मैथिली शरण गुप्त का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें