26.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है हयङ्कष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/01/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


https://t.me/prav353


यह सदाचार वेला हमें उत्साह से भरने के लिये होती है और हमें इस काबिल बनाती है कि हम अपनी समस्यायें स्वयं हल कर सकें


मनुष्य परमात्मा की अपरा प्रकृति का अंशमात्र है कुछ में पराज्ञान की बहुत अधिक ललक रहती है आचार्य जी उन्हीं में से एक हैं और इन सदाचार वेलाओं में हम इसे आसानी से बिना संदेह किये देख सकते हैं


सांसारिक प्राप्तियों के लिये हम सभी छोटे स्तर से लेकर बृहद् भावनाओं तक कल्पनाओं में बहते रहते हैं


दिन पर दिन इसी में बीत जाते हैं कि प्रायः हम छोटी छोटी उपलब्धियों में ही संतोष प्राप्त कर लेते हैं

शरीर, परिवार, समाज, देश आदि के संकट निपटाकर मन बुद्धि के माध्यम से सूक्ष्म से महान् तक हमारा जीवन चलता रहता है


भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।


अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।। गीता


पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - इन आठ प्रकार में मेरी प्रकृति है।।


प्राणिक ऊर्जा के अंगों मन बुद्धि अहंकार आदि के रहने के कारण हम मनुष्य बनते हैं

अन्यथा पशु आदि

प्राण का स्वभाव ही गति है जो चैतन्ययुक्त है वही प्राणी है वृक्ष भी प्राणी है

चिन्तन की शक्ति पराज्ञान की ओर ले जाती है

कि हम कौन हैं कहां से आये हैं

गीता में तो बहुत विस्तार है

आचार्य जी ने यह भी बताया कि पराप्रकृति में कौन प्रवेश कर सकते हैं

संसार का स्वरूप यही है कि इसमें बहुत से प्रपंच हैं और संसार का स्वभाव है जिज्ञासा    कि मैं कौन हूं

संसार का मूल भाव यही है संसारीजन संसार में रहते रहते ऐसे जिज्ञासु हो जाते हैं कि जहां रहते हैं उसी को जानने की चेष्टा करते रहते हैं

बचपन के खिलौनों के बाद घर परिवार विवाह आदि खिलौनों से जब मन ऊब जाता है वैराग्य वहीं से प्रारंभ हो जाता है


वैराग्य भी अपार निधि है

किसी चीज की अपेक्षा करने पर यदि उसकी पूर्ति न हो तो उसकी उपेक्षा करिये