17.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 17जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रसादक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


व्यक्ति सामने उपस्थित समाज, संस्था,समूह,परिवार,परिस्थितियां अर्थात्  उसके चारों ओर व्याप्त बातें जिसके फलस्वरूप वह कार्य करने को विवश होता है 

, परिवेश अर्थात् उस व्यक्ति के भौतिक या भौगोलिक बिंदु  के आसपास का क्षेत्र  

और चिन्तन को आधार मानकर अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है


भावों की अभिव्यक्ति में पर्यावरण अर्थात् ऐसी चीजों का समुच्चय जो किसी व्यक्ति  को चारों ओर से आवृत्त किये हुए है, भी अहम है


तरह तरह के समाचार ईशनिन्दा, ED, कतर, अग्निपथ का विरोध आदि में उलझकर व्यक्ति को आत्मचिन्तन का अवसर नहीं मिलता


व्यक्तिगत, पारिवारिक आदि समस्याओं के कारण भी आत्मचिन्तन का अवसर नहीं मिलता


जिनसे हमारी आत्मीयता है अगर उनसे विवाद हो जाये तो हमारी उलझनें और बढ़ जाती हैं


हमारा बिल्कुल आंतरिक पक्ष  आत्म का आवरण है यह आत्मावरण हम सब ओढ़ें हैं


लेकिन परमात्मा जब हमारे ऊपर कृपा कर देता है हम आत्मावरण को दूर कर निरावृत्त हो जाते हैं


इसीलिये हमें भक्ति का सहारा लेना चाहिये भक्ति वह स्थान है जहां सांसारिक शक्ति आत्मशक्ति में विलीन हो जाती है


गीता का बारहवां अध्याय भक्तियोग पर आधारित है


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।


यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।


शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।12.17।।


अपेक्षारहित, शुद्ध, दक्ष, उदासीन, व्यथा से रहित एवं सारे कर्मों का संन्यास करने वाला  भक्त  मुझे प्रिय है


जो न हर्षित होता है  न द्वेष करता है न ही शोक करता है  न आकांक्षा तथा शुभ अशुभ का त्याग करने वाला  भक्त मुझे प्रिय है


समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।


शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः।।12.18।।


आत्मदर्शन की अनुभूति जितने क्षण हो जाये उतना अच्छा

इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हम संसार से भाग रहे हैं


इस संसार में अपने संसार का सृजन कर लेना भक्तिभाव की पराकाष्ठा है


मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


हमें एकान्त देखना चाहिये आत्मावलोकन करना चाहिये

आत्म का अवलोकन करते समय उसमें स्थायित्व भी लाना आवश्यक है


इसके बाद संघर्षों में हमें अर्जुन की तरह विजय अवश्य मिलेगी



हमारे मांननीय प्रधानमन्त्री ध्यान धारणा आत्मावलोकन स्वाध्याय करते हैं

 जितने आत्मावलोकी तैयार होंगे उतना ही संगठन प्रभावी होगा