16.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रौढप्रताप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


प्रकृति में परिवर्तन भारतवर्ष का वरदान हैं हमारे यहां छह ऋतुएं हैं और सभी महत्त्वपूर्ण हैं भारत में प्रकृति की अद्भुत लीला मनोबल का संवर्धन करती है


यहां प्रकृति का साहचर्य वैराग्य के साथ शौर्य का प्रशिक्षण देता है


इसी कारण ब्रह्मचर्य और संन्यास आश्रम में हम लोग प्रकृति के अधिक से अधिक निकट रहते हैं


हम लोग प्राकृतिक रूप से सरल विचारशील चिन्तनशील सहिष्णु सहयोगी होते हैं अन्य देशों के लोगों में ऐसा नहीं है


हमारे देश का पाश्चात्यीकरण (westernization )बहुत नुकसान कर गया बिना अकल के नकल ने बहुत नुकसान पहुंचाया


हमारी जीवनशैली परिवर्तित हो गई गांव गांव में यह प्रवेश कर गया बहुत सी विकृतियां आ गईं इन्हीं विकृतियों को संवारने के लिये हमारे देश में समय समय पर संस्थाएं महापुरुष साधक आते रहते हैं हमारा काम है कि हम उन्हें ऊर्जा का स्रोत बना लें


आत्मदीप्ति अपने प्रयासों से आती है

मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


ये सदाचार संप्रेषण भी इसी आत्मदीप्ति हेतु हैं


महापुरुषत्व के अद्भुत लक्षण होते हैं कि समता समानता प्रेम का महापुरुष अद्भुत प्रसार कर देता है उसके साथ वाले उसको सामान्य मान लेते हैं


उत्तरकांड में


निज निज मति मुनि हरि गुन गावहिं। निगम सेष सिव पार न पावहिं।।

तुम्हहि आदि खग मसक प्रजंता। नभ उड़ाहिं नहिं पावहिं अंता।।

तिमि रघुपति महिमा अवगाहा। तात कबहुँ कोउ पाव कि थाहा।।

रामु काम सत कोटि सुभग तन। दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन।।

सक्र कोटि सत सरिस बिलासा। नभ सत कोटि अमित अवकासा।।


की व्याख्या करते हुए आचार्य जी कहते हैं


 मैं कौन हूं यह अनुभूति और इस अनुभूति का अभ्यास हमें यदि होता है तो हम अपने को अध्यात्म के द्वार पर पाते हैं



हमारी सेवा पराक्रम विचार संगठन अध्यात्म पर आधारित होकर आगे बढ़ते हैं तो हमें अनुभव होता है कि हम सफल होते जा रहे हैं


इसीलिये आचार्य जी प्रतिदिन  अच्छी संगति प्राणायाम ध्यान धारणा सात्विक भोजन  स्वाध्याय पर जोर देते हैं


खानपान में तो बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है


अपने उचित क्रियाकलापों से संसार को आनन्दित करें



दुष्ट कभी संसार को प्रसन्न नहीं कर सकते  और उन्हें समझ में भी नहीं आता



नलिकागतमपि कुटिलं न भवति सरलं शुनः पृच्छम् ।

तद्वत् खलजनहृदयं बोधितमपि नैव याति माधुर्यम्


अच्छे लोगों के विचार सुनें लेकिन उनकी जीवनशैली को देखकर उन्हें आदर्श बनाएं


इसके अतिरिक्त नापकर लिख दो से क्या आशय है डा रघुवीर क्या कहते थे आदि जानने के लिय सुनें