19.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अग्निपथ पर कदम रक्खो अग्निवीरो, 

स्वयं पर विश्वास रक्खो धर्मधीरो। 

देश संकट के मुहाने पर खड़ा है 

और सीना तान कर नेता अड़ा है,

देशद्रोही बिलबिलाकर आ जुटे हैं

स्वार्थी जयचंद भी उनसे सटे हैं;

त्याग भ्रम भय पग बढ़ाओ कर्मवीरो। ।


प्रस्तुत है उदन्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


उद्योगिनं पुरूषसिंहमुपैति लक्ष्मी ,

दैवं हि दैवम् इति कापुरूषा वदन्ति ।

दैवं निहत्य कुरू पौरूषम् आत्मशक्त्या,

यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोअत्र दोष: ।।

( पंचतंत्र, मित्रसम्प्राप्ति )



सदैव उद्यमी पुरूष के पास ही  लक्ष्मी जाती है । सब कुछ भाग्य पर निर्भरता की सोच कायर पुरूष की होती है अतः भाग्य को त्यागकर हमें उद्यम करना चाहिए । यथाशक्ति प्रयास करने पर भी  सफलता नहीं मिली तो इसमें कोई दोष नहीं है ।





पुरि देहे शेते यह कोश के अनुसार पुरुष की सामान्य परिभाषा है  शरीर में जो सोता है वह पुरुष है


लेकिन पुरुष वही है जो पुरुषार्थ करे



पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।


न पुरुषार्थ बिना कुछ स्वार्थ है,


न पुरुषार्थ बिना परमार्थ है।


समझ लो यह बात यथार्थ है 


कि पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ है।


वेद कहता है एक विराट् पुरुष है 

परमात्मा जब अपनी योगनिद्रा से स्वशक्ति को प्रकट करने की इच्छा करता है तो स्वर के साथ प्रकट होता है स्वर उसके शरीर से उत्पन्न हुआ यानि पहले शरीर बना


सृष्टि के मूल में स्थित मूल तत्त्व के अन्तर्यामी और अतिरेकी स्वरूप का प्रतीक है पुरुष

सृष्टि की रचना प्रकृति और पुरुष के संपर्क से होती है पुरुष सृष्टि के मूल में स्थित है और प्रकृति उसकी लीला है


प्रकृति और पुरुष के संपर्क से विश्व का विकास होता है

ज्ञान लीला भाव लीला विचार लीला का प्रसार करने वाली प्रकृति की क्रियाशीलता के आगे पुरुष मात्र द्रष्टा हो जाता है


हम अध्यात्म में प्रवेश करें इन संप्रेषणों को सुनने का यह मूल उद्देश्य होना चाहिये इसके लिये अध्ययन और स्वाध्याय  अनिवार्य है


योग प्रणाली में ईश्वर को पुरुष विशेष कहा गया है वह पुरुष मानसिक दुर्बलताओं से  परे है और हम इन दुर्बलताओं के साथ हैं इसीलिये सामान्य पुरुष हैं


उस विशेष पुरुष की अनुभूति   ॐ  से होती है  ॐ एक रहस्यात्मक मन्त्र, शब्द, स्वर, भाव और शक्ति है



ॐ के उतार चढ़ाव का अभ्यास अत्यन्त लाभकारी है


संक्षेप में हम पुरुष हैं और पुरुषार्थ करना हमारा कर्तव्य है


हम संसार में रह रहे हैं आत्मावरण पर्यावरण आदि बहुत से आवरणों के बीच में हैं


कुछ लोग समस्याओं से घबराते हैं और कुछ उनसे जूझने के लिये उद्यत हो जाते हैं



यह समय उथलपुथल भरा है परिस्थितियां विषम हैं बहुत से घोटाले नेपथ्य में चले जाते हैं लेकिन घोटाले तो घोटाले हैं ही

बोफोर्स,भोपाल गैस कांड आदि हुए ही हैं

एक संवेदनशील व्यक्ति को ये सारी घटनाएं बहुत कष्ट पहुंचाती हैं


हम भी इन सदाचार संप्रेषणों से लाभ लेते हुए बाह्य जगत् में अपनी स्वच्छ दृष्टि से उसके यथार्थ को पहचानें और आत्मिक दृष्टि से निराशा हताशा का त्याग करें भ्रम और भय का त्याग करें


हमारा सिद्धान्त है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

इसे सदैव ध्यान रखें



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 1936 की फिल्म अमर ज्योति के एक गीत


कारज की ज्योत सदा ही जरे

कारज की ज्योत सदा ही जरे

एक जन जाये दूजा आये फिर भी ज्योत बरे फिर भी ज्योत बरे

की चर्चा किस संदर्भ में की भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें