3.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 3 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 श्री भगवानुवाच


मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।


श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।



प्रस्तुत है ऋजुग आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/5


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम भारतीय जीवन शैली से परिचित हों भारतीय संस्कृति, जिसका डंका संपूर्ण विश्व में बजता था, की अद्भुतता से परिचित हों हमारी बुद्धि शक्ति विवेक शौर्य जाग्रत हो हम स्वस्थ रहें

हम अपने को सौभाग्यशाली समझें कि हम इस पुण्य भूमि में जन्मे हैं  मानस गीता उपनिषद् वेद आदि को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना  लें

हम इन संप्रेषणों के उपयुक्त उचित सुपाच्य विचारों को ग्रहण करके सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी आनन्दित रहें इसके लिये आचार्य जी लगातार प्रयासरत हैं शक्ति भक्ति शौर्य आत्मीयता संयम आदि को स्वयं आचार्य जी ने अपने जीवन में उतारा है इसी कारण हमें इन सदाचार वेलाओं को सुनने की ललक रहती है 


हम मनुष्य अपनी उस शक्ति से परिचित हों जो बतलाती है कि हम  परमात्म का अंश हैं 


मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहं न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥1॥



हाल ही में सउदी अरब में 8000 वर्ष पुराने एक मंदिर की खोज हुई है जो रियाद के दक्षिण पश्चिम इलाके अल -फा में स्थित है


महान भाषाविद, प्रख्यात विद्वान्‌,  भारतीय धरोहर के मनीषी,महान्‌ कोशकार, शब्दशास्त्री  भारतीय संस्कृति के उन्नायक और भारतीय जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष  डा रघुवीर  ( ३०, दिसम्बर १९०२ - १४ मई १९६३) कहते थे विश्व के किसी भी स्थान पर हमें भारतीय संस्कृति के चिह्न मिल जायेंगे


महाभारत के युद्ध में संपूर्ण विश्व शामिल हुआ था


इस वैश्विक विध्वंस के बाद पुनः शान्ति स्थापित हो गई 

इसलिये हमें आत्मविश्वास रखना होगा भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा भारत पुनः अखण्ड स्वरूप प्राप्त करेगा


भारतीय संस्कृति आत्मीयता सिखाती है  जितना भी संसार का पैसारा है उसमें  प्रेम आत्मीयता रिशते नाते संबन्धी परिचित लोग हैं  इसके विस्तार में जो भी रमा हुआ है वे सब सौभाग्यशाली हैं


गीता में



ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।


अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।


परन्तु जो भक्तजन मुझे ही परम लक्ष्य समझते हुए सब कर्मों को मुझे अर्पण करके अनन्ययोग के द्वारा मेरा ही ध्यान करते हैं।।



तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।


भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।।


जिनका चित्त मुझमें ही स्थिर हुआ है ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार सागर से उद्धार करने वाला होता हूँ।।



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने

मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों



दोनों ओर प्रेम पलता है।

सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!


सीस हिलाकर दीपक कहता--

’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’

को किस संदर्भ में प्रयुक्त किया आमिर खान का नाम क्यों आया आचार्य जी ने अपनी गाय से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिये सुनें