प्रस्तुत है अवभासोदधि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 अगस्त 2022
का सदाचार संप्रेषण
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सार -संक्षेप 2/7
हमारा यह शरीर बोझ न बने इसलिये हमें अपनी मानसिकता को सामाजिक संदर्भों में संयुत करना चाहिये
शारीरिक थकान के बाद भी मन यदि प्रफुल्लित रहता है और उस मन के साथ मनोकूल व्यक्तियों का संयोग बना रहता है हमारी सोच सकारात्मक रहती है तो थका शरीर भी अत्यन्त उपयोगी होता है
इससे इतर जिनका सामजिक स्वरूप नहीं होता वे थके शरीर में ही अपने को उलझाए रहते हैं नकारात्मकता उन पर हावी रहती है तो शरीर उन्हें बोझ सा प्रतीत होता है
कल के विषय शिक्षा में आगे आज आचार्य जी कहते हैं
शिक्षा एक संस्कार है मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की प्रेरणा है हम इस संसार में आये हैं तो विधि के विपरीत चलने से हमारा भला कभी नहीं हो सकता
संपूर्ण सृष्टि में एक व्यवस्था बनी हुई है सूर्य का कार्य तेजस का प्रसार है पृथ्वी से आकाश तक भी सामञ्जस्य है हर स्थान पर व्यवस्था है जो उस व्यवस्था के विपरीत जाता है उसे अपनी शक्ति बुद्धि के साथ बहुत संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष में शक्ति का क्षरण होता है
इस संसार में हमारे जीवन का प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्य बना रहे इसके लिये तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली के अंतर्गत एक प्रार्थना है
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।
वेद कहता है
ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ प्रत्येक के साथ संयुत है ॐ शक्ति, मन्त्र,भाव, विचार है और इस सृष्टि के प्रारम्भ का तात्विक स्वरूप है
ये सब समझने के लिये शिक्षक की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है शिक्षक को संपूर्ण मनोविज्ञान का वेत्ता होना भी आवश्यक है
संस्कार भी महत्त्वपूर्ण हैं बाल्यावस्था का प्रारम्भ यदि इस तरह से हो कि
अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं।।
जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा।।
बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई।।
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।।
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा।।
भगवान् राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं निःसंदेह उनकी शिक्षा भी बहुत संस्कारों वाली अत्यन्त उच्च कोटि की हुई
शिक्षा मानसिक रूप से उद्बुद्ध एक तात्विक स्वरूप है जो अनुभव करने की बात है
DIGITAL SCHOOLS मात्र प्रशिक्षित कर देंगे
शिक्षा यानि संस्कार तो जरूरी है ही विद्या अर्थात् ज्ञान की भी आवश्यकता है
ज्ञान सांसारिक भी है और ज्ञान जहां से संसार उद्भूत हुआ है वह भी है
मानसिक शक्ति का विकास भारतीय जीवनशैली में ही है
अच्छी मानसिक शक्ति से ही हम प्रभावशाली और यशस्वी होते हैं
जिसकी कीर्ति है वही जीवित माना जाये
इसके लिये हमें अपने शैक्षिक चिन्तन को विकसित करना होगा
शिक्षक कैसा हो यह मूल विषय है
शिक्षक को संस्कार देने का प्रबन्ध होना चाहिये ऐसे शिक्षकों को तैयार करने वाले शिक्षक को तपस्वी होना चाहिये
संसार में रहते हुए भी हम सांसारिकता में यदि व्याकुल नहीं होते हैं तो शक्ति बुद्धि युक्त हम बने रहेंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सुनील गुप्त जी, भैया अरविन्द तिवारी जी भैया अजय वाजपेयी भैया पुनीत श्रीवास्तव भैया मुकेश गुप्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें