6.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शिक्षा -वेश्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/8



शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिये कि शिक्षार्थी के अन्दर देशभक्ति का भाव कूट कूट कर भर जाए उसे आत्मविश्वासी बना दे त्यागी तपस्वी बना दे वीरता के भाव से ओत -प्रोत कर दे समाजोन्मुखी बना दे



आचार्य जी कहते हैं कि यदि किसी भी महत्त्वपूर्ण विषय को समझाने वाला लेख यदि गहन गम्भीर हो तो सामान्य विद्यार्थी उससे कतराता है


वह उसे आत्मसात् नहीं कर पाता इसी कारण जो विषय आत्मसात् नहीं होता उसे न तो समझा जाता है न समझाया जा सकता है


हमारे यहां प्रारम्भ से ही काव्यमय साहित्य को  महत्त्व दिया गया है क्योंकि काव्य जल्दी याद होता है और गद्य देर से याद होता है

हमारे यहां के धर्मग्रंथ वेद जो विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ हैं काव्यमय हैं


वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' है।



वेदों को अपौरुषेय (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो, यानि ईश्वर कृत) माना जाता है। यह ज्ञान विराट् पुरुष से  श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया माना जाता है।



वेद एक स्वरूप है यानि रूप है यानि वेद का पुरुष है

उस वेद पुरुष के छह अंग हैं

ये वेदांग हैं

नाक मुख कान नेत्र हाथ पैर


छन्द को वेदों का पैर , कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है।



पुरुष की नाक यानि शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्यों कि शरीर में नाक एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है

नाकरहित यानि अशिक्षित 

स्वस्थ पुरुष नाक से ही सांस लेता है और छोड़ता है

नाक सूंघती भी है


बदबू और खुशबू बतलाती है इसी आधार पर हम निर्णय लेते हैं कि बदबू से हमें दूर रहना है और खुशबू के पास


बालकांड में



भय कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥



ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। रघुनाथ (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं।



जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥

बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिं खेल सकल नृप लीला॥


भावार्थ-

चारों वेद जिनके स्वाभाविक श्वास हैं, वे भगवान पढ़ें, यह बड़ा कौतुक (अचरज) है। चारों भाई विद्या, विनय, गुण और शील में (बड़े) निपुण हैं और सब राजाओं की लीलाओं के ही खेल खेलते हैं।


करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥

जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई॥


कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।

प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल॥ 204॥


m.bharatdiscovery.org से साभार




इसके बाद वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनते हैं



निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥




 यह रामात्मक भाव जिसके अन्दर प्रवेश कर जाता है वो शिक्षित व्यक्ति होता है

क्योंकि उसकी नाक जागरूक है सचेत है



और पुरुष का मुख व्याकरण है क्या बोलना कैसे बोलना कब बोलना और कितना बोलना

पुरुष के कान निरुक्त हैं निरुक्त अर्थात् शब्दों का भाव समझना और उस भाव के आधार पर हम कोई फैसला करते हैं


नेत्र ज्योतिष हैं समझ लेना कि यह होने वाला है यह नहीं होने वाला है


हाथ कल्प हैं ये कर्मशील हाथ परमात्मा सबको नहीं देता सूत्र ग्रंथों को कल्प कहते हैं.

इन्हें सूत्र साहित्य इसलिए कहा गया क्योंकि ये बहुत अधिक बातों को बेहद संक्षिप्त रूप में (सूत्र रूप में) बतलाते हैं । क्योंकि इन्हें कण्ठस्थ करना आसान था



श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र व शुल्व सूत्र


श्रौत और गृह्य में यज्ञों का वर्णन है

हमारा जीवन यज्ञमय है 


धर्म सूत्र भी महत्त्वपूर्ण है

धर्म के आधार पर संपूर्ण सृष्टि रची हुई है


धर्मसूत्रों में वर्णाश्रम-धर्म, व्यक्तिगत आचरण, राजा एवं प्रजा के कर्तव्य आदि का विधान है।


शिक्षक इन सारे विषयों को आत्मसात् करके शिक्षार्थी को   आसानी से समझा सकता है

मदालसा ने अपने बेटे को भी इसी तरह समझाया था बेटा तुम मुझे नहीं छू पा रहे हो मेरा कान छू रहे है मेरा हाथ छू रहे हो


ज्ञान कहां तक हमारे देश में पहुंचा कि जब मण्डनमिश्र का घर शंकराचार्य जी पूछते हैं तो पता चलता है कि वहां तो ,बोलते हैं



इस देश की शिक्षा ने जीव से ब्रह्म तक की यात्रा कराई है शौर्य शक्ति का सामञ्जस्य बतलाया है

हमें निराशा का भाव नहीं रखना चाहिये उत्थान पतन चलता रहता है भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा