29.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शौर्य -लिबिङ्कर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/62


लिबिङ्कर=लेखक



संवादहीनता के कारण संसार हमें बहुत बड़े व्यामोह में डुबो देता है और तब हम शंकालु होकर अपनों पर और अपने पर शंका करने लगते हैं संसार का संवादात्मक स्वरूप रचनात्मक और विवेक की ओर उन्मुख संसारत्व है


हम लोगों का सौभाग्य है कि पूज्य गुरु जी,दीनदयाल जी, अशोक सिंघल जी, बैरिस्टर जी आदि के सान्निध्य से मिले बहुत सारे सद्गुणों के भण्डार आचार्य जी नित्य हमें सद्चिन्तन सद्विचारों सद्प्रयासों की ओर उन्मुख करते हैं



इसलिये निश्शंक भाव के साथ आशान्वित रहते हुए संघर्षों से बिना भयभीत हुए दम्भरहित होकर आत्मविश्वासयुक्त होकर राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होते हुए हमें अपने लक्ष्य की ओर चलते रहना चाहिये ये ही रामत्व के लक्षण हैं



आइये इसी रामत्व की चिन्तना के साथ अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं


भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी॥

प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती॥3॥



भगवान् राम सतत साधनारत लक्ष्मण को समझा रहे हैं कि तुम किसी गलत रास्ते पर नहीं चल रहे हो 

भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा॥

एहि बिधि कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती॥1॥


संघर्ष निकट है लेकिन  आत्मशक्ति के कारण परमात्मा के प्रति भक्ति का भाव बहुत प्रबल हो जाता है


जिनके मन में यह भाव अवतरित हो जाता है वो संघर्ष भी आनन्द के साथ करते हैं


मानस में केवल भक्ति नहीं है इसमें शक्ति शौर्य विश्वास संयम साधना आदि बहुत कुछ है

सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी॥

पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा॥2॥

रावण साधना भी भोग की सिद्धि के लिये करता है


वह दंभी विद्वान है


रावण ने पाताल लोक को जीतने के लिए अपनी बहन शूर्पणखा के पति विद्युत्जिह्व का वध कर डाला 

और फिर शूर्पणखा को भारत भेज दिया,रक्षा के लिये खर दूषण त्रिशरा को साथ भेज दिया

वह  स्वैराचारी बनी भारत में घूमने लगी


भ्राता पिता पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी॥

होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी॥3॥


रुचिर रूप धरि प्रभु पहिं जाई। बोली बचन बहुत मुसुकाई॥

तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी। यह सँजोग बिधि रचा बिचारी॥4॥


मम अनुरूप पुरुष जग माहीं। देखेउँ खोजि लोक तिहु नाहीं॥

तातें अब लगि रहिउँ कुमारी। मनु माना कछु तुम्हहि निहारी॥5॥


सीतहि चितइ कही प्रभु बाता। अहइ कुआर मोर लघु भ्राता॥

गइ लछिमन रिपु भगिनी जानी। प्रभु बिलोकि बोले मृदु बानी॥6॥



..


लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।

ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥


आज के समय की बात करें तो राम रावण युद्ध कैसे सन्निकट है जानने के लिये सुनें