28.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विद्योतन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/61


विद्योतन =प्रकाश करने वाला


स्थान :उन्नाव



ढोंग का इस समय बोलबाला है भ्रमित होकर संसार की सारी समस्याओं का हल खोजना लगातार जारी है


पढ़ने सीखने समझने मनन करने निदिध्यासन करने के बाद अभ्यस्त होकर सहज ढंग से जीवन के क्षेत्र में बिना दम्भ के विघ्नों को अपनी शक्ति सामर्थ्य के साथ हल करते चलने से जीवन के आनन्द की अनुभूति सहज प्राप्त होने लगती है

लोग रामचरित मानस में बाल कांड उत्तर कांड में तत्त्व ज्ञान चिन्तन के लिये, कथा के आनन्द के लिये अयोध्या कांड में ,शौर्य पराक्रम सफलता से उत्साहित होने के लिये सुन्दर कांड में ,लोक व्यवहार और समस्याओं के हल के लिये किष्किन्धा कांड में जाते हैं अरण्य कांड में

 बहुत उतार चढ़ाव हैं इस में भक्ति, संघर्ष, राम -गीता, नारद संवाद है

आइये इसी कांड में राम गीता भाग में प्रवेश करते हैं


पञ्चवटी अत्यन्त दिव्य और सुरम्य स्थान है भगवान् राम सुन्दर सी पर्णशाला में शान्ति से बैठे हुए हैं कवि का कौशल  देखिये कि ऐसे समय में ध्यान धारणा चिन्तन मनन की बात कर समय का सदुपयोग करने का प्रयास हो रहा है समय के क्षणांश का उपयोग शक्ति बुद्धि विवेक के सामञ्जस्य वाले सात्विक पुरुषों का लक्षण है


ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माहीं॥

कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी॥4॥


ज्ञान वह है जिसमें  मान आदि दोष न हो एवं जो सबसे समान रूप से ब्रह्म को देखता है। परम वैराग्यवान वही है जो  समस्त सिद्धियों को,तीनों गुणों को तृण के समान त्याग चुका हो



(वनेऽपि दोषाः प्रभवन्ति रागिणां गृहेऽपि पञ्चेन्द्रिय-निग्रहस् तपः ।

अकुत्सिते कर्मणि यः प्रवर्तते त्रिवृत्त-रागस्य गृहं तपोवनम् ॥ ९० ॥)


माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।

बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥15॥


धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना॥

जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई॥1॥


सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥

भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला॥2॥


हमारे ग्रन्थ हमारा साहित्य हमारा धर्म, दर्शन अद्भुत हैं हमें विद्या अविद्या दोनों को जानने की आवश्यकता है

इसी कारण आचार्य जी राम चरित मानस को पढ़ने के लिये परामर्श देते हैं


हमारे अन्दर से यदि तात्विक प्रश्नों के उत्तर निकलने लगें तो स्वाध्याय सफल हो जाता है


समाज इसी कारण संकट में है क्योंकि पूरा जीवन पैसे पर टिका है


इसी समाज में हम अपने अंदर के तत्व को शक्ति को सद्विचार को जान जायें इसी का आचार्य जी प्रतिदिन प्रयास करते हैं

आचार्य जी मोमबत्ती जलाये हुए हैं हम उस प्रकाश में सन्मार्ग की ओर उन्मुख हों तो हमारा कल्याण होगा