ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर॥
सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं॥4
पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए॥
बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं॥2॥
प्रस्तुत है सुरर्षि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 30-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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609 वां सार -संक्षेप
1 =दिव्य ऋषि
सुनि बिरंचि अतिसय सुख मानहिं। पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं॥3॥
इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी स्वयं जिस कथा को बार बार सुनना चाहते हैं ऐसी राम कथा को आजकल हम लोग इन सदाचार संप्रेषणों में आचार्य जी से सुन कर लाभ प्राप्त कर रहे हैं
यह कथा हमें प्रेरित करती है कि जीवन में कितने भी कष्ट आएं हम अपने लक्ष्य के प्रति अडिग बने रहें
जैसी भी गम्भीर परिस्थितियां आएं उन्हें आंकते भांपते हुए अपने कर्तव्य का बोध करें
कैसे करना है क्यों करना है कब करना है कहां करना है इन सारे प्रश्नों के उत्तर इस कथा में मिल जाएंगे
The world is too much with us; late and soon,
Getting and spending we lay waste our powers;
Little we see in Nature that is ours;
We have given our hearts away, a sordid boon!
This Sea that bares her bosom to the moon,
इसका आशय यह है कि सांसारिकता मनुष्य को इतना घेरे रहती है कि उसे अध्यात्म की ओर ध्यान ही नहीं रहता संकट आने पर उसे परमात्मा का नाम याद आता है
लेकिन हम लोगों के भाव विचार इससे भिन्न हैं हम ये सदाचार संप्रेषण सुन रहे हैं परमात्मा का नित्य स्मरण करते हैं हमारी उन्मुखता अध्यात्म की ओर रहती है
हम अत्यन्त भावुक हैं देश के लिए समाज के लिए कुछ न कुछ करने की हमारी चाह बनी रहती है
जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।
जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान॥42॥
सनक सनातन सनत कुमार सनन्दन मुनि जैसे जीवनमुक्त ब्रह्मनिष्ठ पुरुष भी ब्रह्म समाधि छोड़कर श्री रामजी की कथा सुनते हैं। यह तो बहुत आश्चर्य की बात है
यह जानकर भी जो इस कथा से प्रेम नहीं करते, उनके हृदय पत्थर के समान हैं
इसके अतिरिक्त
सरौंहां में चल रहे मानस के अखंड पाठ में सम्मिलित होने के लिए आप सब सादर आमन्त्रित हैं
श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं , प्रभु श्री राम सभी की हर प्रकार से रक्षा करें ! जय श्री राम