देनहार कोउ और है , भेजत सो दिन रैन ।
प्रस्तुत है सुनीथ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080
तदनुसार 01-04- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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611वां सार -संक्षेप
1 सद्गुणी
स्थान :चित्रकूट
चित्रकूट में रमि रहे, ‘रहिमन’ अवध-नरेस ।
जा पर बिपदा परत है , सो आवत यहि देस ॥
अयोध्या के महाराजा श्री राम जी अपना देश अयोध्या छोड़कर चित्रकूट में जाकर बस गये, इस क्षेत्र में वही आता है, जिस पर विपदा आती है
अत्यन्त भावुक रहीम, जो भक्त नहीं कहे जा सकते,के इस दोहे से तो यही लगता है कि भगवान् राम पर जब विपत्ति आई तो वे चित्रकूट आए लेकिन यह सत्य नहीं है समाज पर जब विपत्ति आई तब चित्रकूट आकर ऋषियों से ज्ञान प्राप्त कर संयम शक्ति संगठन
आदि का महत्त्व समझकर दुष्ट रावण को भगवान् राम ने मारा है
चित्रकूट सामान्य स्थान नहीं है यह अत्यन्त प्रेरक पुनीत पवित्र प्रभावकारी स्थल है और मोदक बाबा के अनुसार चित्रकूट चिन्ताहरण स्थान है
चित्रकूट बद्रीनाथ रामेश्वरम आदि स्थान तीर्थस्थान है इनका एक हेतु भी है जो इस हेतु को समझते हैं वे तीर्थयात्रा करते हैं हमें तीर्थोन्मुख होने की आवश्यकता है जब यह भाव हमारे अन्दर प्रवेश करेगा तो हमें पूरा भारत ही तीर्थ लगेगा
जो कार्य करेंगे वह पूजा लगेगा जो उपभोग करेंगे वह प्रसाद लगेगा यही विशिष्ट भारतीय संस्कृति है
हमारे अन्दर जब देश को देखने की इच्छा जाग्रत होगी तब हम उससे प्रेम करेंगे ही
इसी कारण सगुणोपासक सामने विग्रह रखकर पूजा करते हैं
नाना जी देशमुख को भी यह स्थान बहुत भा गया और उन्होंने इसे अपनी कर्मस्थली बना लिया
उत्तरकांड में भगवान राम संत और असंत का भेद बता चुके हैं उन्होंने भाइयों के प्रश्नों जीवन का संघर्ष क्या है परिस्थितियां क्या हैं संतोष क्या है आत्मीयता का प्रसार कैसे होता है, का उत्तर दे दिया है
पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥
निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥1॥
संत असंतन्ह के गुन भाषे। ते न परहिं भव जिन्ह लखि राखे॥4॥
और इसके बाद
पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए॥
बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं॥2॥
जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई॥3॥
विचारों के स्रोत चिन्तकों ध्यानियों योगियों से यह बात राजा राम, जिनके पास राजा के रूप में अधिकार हैं, कह रहे हैं
विचार और अधिकार के सामञ्जस्य से समाज सुखी होता है और जब इनमें सामञ्जस्य नहीं होता तो समाज दुःखी होता है
आचार्य जी ने दशशीश का अर्थ स्पष्ट किया सिर अहंकार का भी प्रतीक है
रामराज्य की स्थापना कैसे होती है यह भी स्पष्ट किया
समाज के समन्वित होने से रामराज्य स्थापित होता है चिन्तक समाज को जाग्रत कर सकते हैं और इसलिए चिन्तकों की वृद्धि आवश्यक है