29.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29-06- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यचेतस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

एकादशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 29-06- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  700 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त


आत्मज्ञान के इस नित्य तप में  आचार्य  जी   के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की प्रेरणा देते हैं l  हनुमान जी की अहैतुकी कृपा से हमें अज्ञान रूपी अंधकार दूर करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध  हैं  तत्त्वों का प्राचुर्य दर्शाती यह वेला ऐसा ही एक अवसर है 

आइये  बिना भ्रमित हुए  इसका लाभ  उठाकर  शक्ति  बुद्धि सामर्थ्य के साथ  वैश्विक लीला से भी पूर्ण सरोकार रखते हुए  हम इस लीला के  संवेदनशील अभिनेता अपने पात्र के साथ पूर्ण न्याय करते हुए  भावुकता को जीवित रखते हुए संकटों का सामना करने की योग्यता प्राप्त कर लें, कायरता का परित्याग कर लें

और दीपक के रूप में तेल की अन्तिम बूंद जलने तक हर ओर प्रकाश फैलाने का प्रण कर लें

हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों 


हम अनन्त से चलकर अनन्त में विलीन होने वाली परंपरा के परिपोषक हैं 


वेदान्त के एक  विशिष्टाद्वैतवादी व्याख्याता हैं आश्मरथ्य आचार्य

ये भेदाभेद के गम्भीर व्याख्याता हैं 

भेदाभेद वेदांत (द्वैताद्वैत) भारत में वेदांत दर्शन की कई परंपराओं में से एक है। "भेदाभेदौ " एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है " असहमति और सहमति, भिन्नता और एकरूपता

इस मत के अनुसार 

आत्मा न तो ब्रह्म से भिन्न है न अभिन्न


इसी तरह एक हैं आचार्य जैमिनी महर्षि  जो वेदव्यास के शिष्य कहे जाते हैं कुछ के अनुसार वे वेदव्यास से भी पहले के हैं

यदि उनके शिष्य हैं तो यह सत्य हो जाता है कि सामवेद और महाभारत की शिक्षा जैमिनी ने वेदव्यास से ही पायी थीं। ये ही प्रसिद्ध पूर्व मीमांसा दर्शन के रचयिता हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'भारतसंहिता' की भी रचना की है , जो 'जैमिनि भारत' के नाम से प्रसिद्ध है।




हम यह देखें कि अपने कर्तव्य कर्म में हमारा मन लग रहा है या नहीं


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


शैथिल्य हमें आनन्द से दूर कर देगा


हम पूर्ण के उपासक खंडित चिन्तन में  व्यग्र होकर तथ्यात्मक जगत में उलझकर  आत्म से दूर हो जाते हैं इसलिए आत्मस्थ होने की चेष्टा करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा सुनील जी भैया अमित अग्रवाल जी (बैच 1986) का नाम क्यों लिया


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