1.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 01-07- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यमानस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 01-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  702 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त




आत्मज्ञान के इस नित्य कर्तव्य में  आचार्य जी   के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की,परिवार, अक्षय समाज और  अक्षय राष्ट्र के प्रति हमारे द्वारा अपने कर्तव्य का अनुभव करने की प्रेरणा देते हैं l


आइये  विश्वासपूर्वक इस वेला का लाभ  उठाकर  शक्ति  बुद्धि सामर्थ्य संचित करते हुए

(इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी प्राप्ति के लिए परिश्रम आवश्यक है)


 सांसारिकता से भी पूर्ण सरोकार रखते हुए  क्योंकि हम उस संसार में रह रहे हैं जो गुणों अवगुणों से सनी हुई है



भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥

कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥2॥



भले-बुरे सभी  लोग ब्रह्मा द्वारा पैदा किए हुए हैं, किन्तु गुण और दोषों का विचार कर वेदों ने उनका विभाजन कर दिया है। वेद, इतिहास, पुराण कहते हैं कि ब्रह्मा की यह अद्भुत सृष्टि गुणों अवगुणों से भरी हुई है 

अभ्यास में अत्यन्त कठिन संतत्व अपनाने का प्रयास करते हुए प्रगति का पथ  पकड़ लें


अपनी अपनी भूमिकाओं को पहचानें

हमारे यहां बहुत अन्याय हुए हैं उनके परिष्करण की  आवश्यकता का हम लोग ध्यान रखें 

आइये आज शब्दाद्वैत की चर्चा करते हैं 

हमारे यहां अद्वैत द्वैत शुद्धाद्वैत विशिष्टाद्वैत आदि की तरह शब्दाद्वैत भी है



भर्तृहरि ने वाक्यपदीय में शब्दाद्वैतवाद को दार्शनिक रूप से प्रस्तुत किया है


वाक्यपदीय संस्कृत व्याकरण का एक अत्यन्त प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसे त्रिकाण्डी भी कहते हैं। वाक्यपदीय, व्याकरण शृंखला का मुख्य दार्शनिक ग्रन्थ है।


इसमें भर्तृहरि ने भाषा  की प्रकृति और उसके बाह्य जगत से सम्बन्ध पर अपने विचार दिये हैं। यह ग्रंथ तीन कांडों में  है


पहले काण्ड ब्रह्मकाण्ड  में शब्द की प्रकृति की व्याख्या  है। इसमें शब्द जिसे ब्रह्म माना गया है और ब्रह्म की प्राप्ति हेतु शब्द को प्रमुख साधन कहा गया है।


दूसरे काण्ड में वाक्य के विषय में विभिन्न मत रखे हैं।

तीसरे काण्ड में अन्य दार्शनिक रीतियों के विषयों की चर्चा की गयी है। इसमें भर्तृहरि यह दर्शाते हैं कि विभिन्न मत एक ही वस्तु के विभिन्न आयामों को प्रकाशित करते हैं।



व्याकरण शास्त्र एक तरह से आगम शास्त्र है जिसकी अभिव्यक्ति महेश्वर से है। आगम के अनुसार शब्द के चार स्वरूप हैं

परा ,पश्यंती, मध्यमा और वैखरी


वास्तव में शब्दब्रह्म की उपासना ही ब्रह्म की उपासना है  इसलिये हमें बोलते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए बिना समझे किसी पर बहुत अधिक टिप्पणी भी नहीं करनी चाहिए

हमारे यहां इसलिए मौन का अभ्यास भी है प्राणायाम पर ध्यान दें

आचार्य जी ने लेखन योग पर जोर दिया


इसके अलावा

आचार्य जी  ने  एक सज्जन श्री नारायण चन्द्र पाण्डेय जी की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें