प्रस्तुत है दीर्घदर्शिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 1 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९४६ वां* सार -संक्षेप1 दूरदर्शी
स्थान :कानपुर
हमारे सनातन धर्म में आत्मोद्धार के लिए बना सन्ध्योपासन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नियमित कर्म है त्रिवर्णक के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है किन्तु अत्यन्त व्यस्त रहने वाले शूद्रों ( पद्भ्यां शूद्रो अजायत ) के लिए यह आवश्यक नहीं है उनका कर्म ही सन्ध्योपासन है
सन्ध्योपासन एक विधि व्यवस्था का क्रम निर्वहन है सन्धि वेला में हम मन्त्रोच्चारण, ध्यान, धारणा और आचमन या मौन मन्त्र जप करते हैं आचार्य जी का हम लोगों को जाग्रत करने के साथ शिक्षक शिक्षार्थी के अत्यन्त पवित्र संबन्ध को दर्शाने वाला यह सदाचार संप्रेषण रूपी कार्य सन्ध्योपासन की तरह ही हो गया है समाज और देश के लिए जीने का संकल्प लेने वाले हम लोगों को आत्मस्थता के साथ शक्ति बुद्धि चैतन्य विचार ऊर्जा प्रदान करने वाले आत्मबोधोत्सव की इस प्रक्रिया का लाभ उठाना चाहिए और अगली पीढ़ी को संस्कारित करने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए
कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय l
दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय l l
बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥
सत्संग के बिना विवेक नहीं होता है और साथ ही भगवान् राम जी की कृपा के बिना सत्संग आसानी से नहीं मिलता सत्संगति आनंद व कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि ही फल है और सारे साधन तो फूल हैं
शिक्षक शिक्षार्थी का सम्बन्ध भारतवर्ष की उत्तम कोटि की निधि है तभी हम साथ साथ कहते हैं
ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
फिर हम सर्वत्र शान्ति की कामना के लिए कहते हैं
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
शान्ति सुख समृद्धि संयम स्वास्थ्य आदि बहुत कुछ है अद्भुत है हमारा जीवन दर्शन
आचार्य जी ने विकार शब्द को भी स्पष्ट किया
जो चीज हमारे साथ सहज नहीं है वह विकार है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दिल्ली में रहने वाले एक सज्जन की चर्चा क्यों की और श्री निरंकार तिवारी जी का उल्लेख क्यों हुआ किस बालक को उसका पिता प्रणाम करता है जानने के लिए सुनें