स्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
११२८ वां सार -संक्षेप
संसार का स्वभाव ऐसा है कि उथल पुथल चलती रहती है कब क्या होगा कैसे होगा क्यों होगा पता नहीं चलता कुछ लोग इसी में चिन्तित रहते हैं भ्रमित रहते हैं भयभीत भी रहते हैं
वैसे तो अर्जुन स्वस्थ हैं लेकिन मन से बीमार हैं युद्ध स्थल में वे भ्रमित हैं सामने अपने खड़े हैं सामने आदरणीय लोग दिख रहे हैं गांडीव सरक रहा है शरीर पसीने पसीने हो रहा है
अर्जुन ऊहापोह में है कि इन पर बाण कैसे चलेंगे
यह तो मर्यादा के विपरीत है
तो अर्जुन के बहाने एक लम्बा सा प्रवचन हम लोगों के लिए है
गीता में दूसरे तीसरे चौथे पांचवे अध्याय अत्यन्त व्यावहारिक अध्याय हैं
पांचवे अध्याय में अर्जुन सीधे सीधे पूछता है
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।5.1।।
आप कर्मों के संन्यास और योग (कर्म का आचरण) की प्रशंसा करते हैं। इन दोनों में जो भी निश्चयपूर्वक श्रेयस्कर हो उसको बताइये
तो भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं
कर्मसंन्यास और कर्मयोग दोनों ही परम कल्याणकारक हैं परन्तु उन दोनों में कर्मयोग श्रेष्ठ है
आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि मूर्तिपूजा लोग क्यों करते हैं मूर्ति में संपूर्ण विश्वास को वे टिका देते हैं
ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।
जो व्यक्ति न किसी से द्वेष करता है और न ही किसी की आकांक्षा, वह सदैव संन्यासी समझने योग्य है
कारण स्पष्ट है द्वन्द्वों से रहित व्यक्ति सहज ही बन्धन मुक्त हो जाता है
आचार्य जी ने न्यास का अर्थ स्पष्ट किया किसी भी वस्तु भाव विचार को एक स्थान पर स्थापित कर देना न्यास कहलाता है
जैसे शिलान्यास
युगभारती भावों का विस्तार है हमने प्रतिज्ञा की है कि जीवन पर्यन्त हम समाज और देश के लिए समर्पित रहेंगे
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारे भीतर राष्ट्र -भक्ति प्रज्वलित रहे
हम संकटों से जूझने के रास्ते निकालते रहें
आज उन्नाव स्थित सरस्वती विद्या मन्दिर विद्यालय का स्थापना दिवस है और उसके संस्थापक अर्थात् हमारे आदरणीय भाईसाहब का जन्मदिवस है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी भैया पंकज जी भैया मलय जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें