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आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३० वां* सार -संक्षेप


जब हम चिन्तन की गहराइयों में उतरेंगे तो ऐसा प्रतीत होगा कि परमकवि परमात्मा द्वारा बनाई गई संपूर्ण सृष्टि ही परमात्मा की सभी रसों वाली एक अप्रतिम कविता है हमें इसका आनन्द लेना चाहिए यह कविता अनन्त चल रही है भाव -जगत स्थूल जगत का सार है जिसको इस सार को प्राप्त करने की विधि आ जाती है तो सृष्टि से अवशोषित कर वह कवि,अभियन्ता,वैज्ञानिक,चिकित्सक आदि हो जाता है सूक्ष्म रूप में भाव हमारे भीतर विद्यमान रहते हैं और यदि उन्हें व्यक्त करने की शक्ति प्राप्त हो जाए तो इसे बहुत बड़ा वरदान समझना चाहिए

अनेक कवियों ऋषियों मुनियों दार्शनिकों वीर योद्धाओं आदि की एक लम्बी सूची है सूक्ष्म रूप में उनके अंश हमारे भीतर अवस्थित हैं हमें इसे अनुभव करने की आवश्यकता है हमें निराश हताश नहीं रहना चाहिए स्थूल पदार्थों को एकत्र करने में एक बच्चा प्रसन्न रह सकता है लेकिन जैसे जैसे समझदारी वृद्धिंगत होती जाएगी स्थूलता के प्रति आकर्षण कम होता जाएगा और यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो इसका अर्थ हम बच्चे हैं आत्मनिरीक्षण करें आत्मस्थ होने की चेष्टा अत्यावश्यक है


कबीर ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल। 


दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूलि॥


क्षणमात्र का ध्यान भी अवर्णनीय है इसी ध्यान की बात भगवान् कृष्ण कहते हैं


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


संसार में समस्याएं हैं इसमें कोई भ्रम नहीं उन समस्याओं से अनुरक्त होकर उन्हें समझना अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए संकल्पित होना और उन कर्तव्यों को प्रामाणिकता से करना अपने लक्ष्य पर सदैव ध्यान देना जैसे राष्ट्र -निष्ठा राष्ट्र -सेवा और उन समस्याओं से विरक्त होकर अपने को समझना हमारा कर्तव्य है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुई कवि गोष्ठी के विषय में क्या बताया आज आचार्य जी की क्या योजना है जानने के लिए सुनें