प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११४९ वां* सार -संक्षेप
स्थान :भैया अरविन्द तिवारी जी का आवास लक्ष्मणपुरी (लखनऊ )
इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य स्पष्ट है आचार्य जी इन्हीं के माध्यम से नित्य प्रयास करते हैं कि हम ध्यान धारणा निदिध्यासन चिन्तन मनन लेखन में रत हों ध्यान और धारणा से शरीर के भीतर का सूक्ष्म तत्त्व, शरीर के अन्दर की ऊर्जा जाग्रत होती है और यह अपने प्रयास से ही जाग्रत होती है हम अपना परिवार (युगभारती परिवार )भाव विस्तृत करें हमारा आत्मबोध जाग्रत हो हम आत्मबोधोत्सव मनाने के लिए सन्नद्ध हों
मैं कौन हूं मैं कहां से आया हूं मुझे कहां जाना है और जब आत्मबोध होता है तो भय नहीं रहता जिस प्रकार भगवान् बुद्ध को आत्मबोध हुआ था और उन्हें डाकू अंगुलिमाल से डर नहीं लगा उन्होंने अंगुलिमाल से कहा
एक व्यक्ति का सिर जोड़ नहीं सकते तो काटने में क्या वीरता है? अंगुलिमाल अवाक रह गया। वह उनकी बातों को सुनता रहा। एक अनजानी शक्ति ने उसके हृदय को परिवर्तित कर दिया। उसे लगा कि वास्तव में उससे भी ताकतवर कोई है और उसे आत्मग्लानि होने लगी।
वह उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला- 'हे महात्मन् ! मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं भटक गया था। आप मुझे अपनी शरण में ले लीजिए
और इस प्रकार वह डाकू उनका शिष्य बन गया
इन कथाओं में अत्यधिक तत्त्व होता है जब हम समझदार हो जाते हैं तो उसका विश्लेषण करते हैं जब हमारे भीतर उसके तत्त्व की अनुभूति होती है तो हमें एक विशेष शक्ति प्राप्त होती है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चम्पूकाव्य की जीवन से तुलना की और कहा कि अधिवेशन इस तरह से करें कि संसार इसे अपनी स्मृतियों में संजोए रहे
आचार्य जी ने अधिवेशन के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें