प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११४८ वां* सार -संक्षेप
हमारी शिक्षा में मलिनता का जो प्रवेश हो गया है अर्थात् पढ़ना इस कारण आवश्यक है कि नौकरी मिल जाए और सही प्रकार से जीवनयापन हो जाए उससे हम व्याकुल हुए कमजोर हुए और भ्रमित हुए
इसका परिणाम यह हुआ कि पशुबल हमारे ऊपर हावी हो गया
हमारी शिक्षा में सनातन धर्म, जो संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब कहता है, वर्णाश्रम धर्म जिसकी प्राणिक व्यवस्था है,के वास्तविक स्वरूप को प्रविष्ट कराने की अत्यन्त आवश्यकता है जिस तरह हम अपने शरीर के विकार दूर करते हैं उसी प्रकार आनन्दमयी वातावरण के निर्माण के लिए समाज के विकार दूर करने की आवश्यकता है
शिक्षा में आवश्यकता इस बात की है कि जो अच्छा है उसे ग्रहण किया जाए जो व्यर्थ है उसका निरसन किया जाए शिक्षा के आधार पर ही स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा है शिक्षा के विकृत होने पर हम भटकने लगते हैं
इस कारण हमें आत्मबोध की अत्यन्त आवश्यकता है हमें गीता रामायण मानस महाभारत स्मृति -ग्रंथ उपनिषद् के अध्ययन की आवश्यकता है
अपनी दृष्टि समाजोन्मुखी रखें विकृत खानपान से विचार कभी परिष्कृत नहीं होंगे प्रभावकारी नहीं होंगे इस कारण विकृत खानपान से स्वयं बचें और अपने आत्मीय जनों को बचाएं
समाज को आश्वस्त करने वाला कि चारों ओर अंधेरा ही नहीं है यह राष्ट्रीय अधिवेशन युग -द्रष्टा पं दीनदयाल उपाध्याय की अधूरी भावना को पूरी करने के लिए हम करने जा रहे हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पङ्कज सिंह जी का नाम क्यों लिया आज आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें