29.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५८ वां* सार -संक्षेप


भगवान् सर्वत्र व्याप्त है  यहां है वहां है वह दूर है वह पास भी है हमें देखने की दृष्टि चाहिए  देखा जाए तो पूरे ब्रह्मांड में सब कुछ ईश्वर द्वारा ही आच्छादित है। परमात्मा की लीला अद्भुत है 


ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


मनुष्य को इस संसार में कर्मरत रहते हुए ही सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए । इससे भिन्न किसी और प्रकार का विधान है ही नहीं ,इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीवित रहने के इच्छुक व्यक्ति में कर्म का लेप नहीं होता।


असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥

वे लोक सूर्य से रहित हैं और घोर अन्धकार से आच्छादित हैं।

 जो कोई भी अपनी आत्मा का हनन करता है  वह इन्हीं लोकों में पहुंच जाता है

हमें आत्म को जानना चाहिए यही अध्यात्म है 

हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारत में हुआ है  


उठें प्रात: सभी उत्साह का उत्सव मनाने को

निशा में नींद के पहले कि कुछ यह गुनगुनाने को 

बड़ा सौभाग्य है अपना कि भारतभूमि में जन्मे 

स्वयं की कर्मनिष्ठा शौर्य नवयुग को सुनाने को


दिन भर हम सांसारिकता में लिप्त रहते हैं प्रातःकाल हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रेरित करते हैं  आचार्य जी  यह अद्भुत प्रयास करते हैं ताकि हम अविद्या के साथ विद्या को भी जान सकें आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त कर सकें हम यह जान सकें कि ईश्वर की अनुभूति अत्यन्त आनन्ददायक होती है 

निराश योद्धा की निराशा दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ज्ञान देते हैं कभी राम योद्धा बनकर आगे आते हैं यही सनातनत्व है 

संसार का सार ही यही है कि जिसकी जो भूमिका हो उसे वह पता होनी चाहिए 

हम राष्ट्रभक्तों को भी अपनी भूमिका की पहचान होनी चाहिए

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः 

हम अपनी भूमिका से अपदस्थ न हों और हंसी का पात्र न बनें आत्मबोध आत्मशोध आत्मशक्ति अनिवार्य है

राक्षसी वृत्तियों को समाप्त करने का उत्साह हमारे अन्दर होना चाहिए हम बिल्कुल निराश हताश न हों 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विद्यालय का कौन सा प्रसंग बताया जिसमें अलादीन के चिराग का उल्लेख हुआ भारती जी कालिका जी का नाम क्यों आया भैया विकास जी की आज कौन सी अच्छाई आचार्य जी ने बताई जानने के लिए सुनें