प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११६० वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि हमारे अन्दर बेचारगी तनिक भी न आए
आचार्य जी द्वारा रचित निम्नांकित चार पंक्तियां हमें प्रेरित कर रही हैं कि किस प्रकार संगठित रहते हुए हमें परिस्थितियों का सामना करना है
जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें
कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें
हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो
छुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हो भागें
भगवान् राम और भगवान् कृष्ण दोनों ने संगठन किया दोनों के सामने विषम परिस्थितियां थीं लेकिन उन्होंने डटकर उनका सामना किया ये हमारे मार्गदर्शक हैं अद्भुत प्रकाश की किरणें फैलाने वाली हमारी परम्परा अद्भुत है
जो हमें शौर्य पराक्रम धैर्य संयम पुरुषार्थ का बोध कराती है इसलिए हमारे अन्दर कायरता का भाव लेशमात्र भी नहीं आना चाहिए रामादल की तरह संगठन करें
समस्याएं बहुत सी हैं हमें उनका समाधान करना है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।२/४७।।
तुलसीदास जी जिनकी यशधारा कभी नहीं सूखेगी के सामने भी विषम परिस्थितियां थीं अकबर समाज को व्यामोहित किए था ऐसे में उन्होंने मानस की रचना की जिसने तन्द्रिल तरुणावस्था को जाग्रत किया यह ग्रंथ संकटों में सहारा बना
तुलसीदास ऐसे मार्गदर्शक, आदर्श,शक्ति के केन्द्र, विश्वास के आधार बने जिनकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती आचार्य जी लिखते हैं
तुलसी तुम अंधकार के दीप दिवस की.....
समस्याओं से निजात पाने के लिए हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कर्मशील बनना चाहिए
हम राष्ट्रभक्त कुक्करों में निहत्थे घिर न जाएं इस ओर ध्यान रखें सजग रहें निराशा हताशा से दूर रहें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष जी का नाम क्यों लिया धूपड़ जी और वीर कुंवर का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें