प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११६१ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य एक भावपूर्ण वातावरण में हमें संयुत करते हुए प्रेरित करते हैं कि हम भय भ्रम निराशा हताशा से दूर रहें उत्थित और जाग्रत हों दिनचर्या और खानपान पर भी ध्यान दें परिस्थितियों को भांपना सीखें समय पर शक्ति का प्रदर्शन करें वर्तमान को संभालें भावों के साथ विचार और क्रिया पर भी दृष्टि रखें हमारा संगठन सुदृढ़ रहे आचार्य जी हमें सचेत करते हैं कि हमारे विचार भावों के दास बनकर भटकें नहीं
और कहते हैं कि *सुसज्ज सन्नद्धता* भी आवश्यक है
हम युद्ध भी लड़ते सदा निर्द्वन्द्व निस्पृह भाव से
तुम शान्ति में भी रह नहीं पाते सुशान्त स्वभाव से
हम त्यागकर संतुष्ट रहते जिन्दगी भर मौज से
तुम हर समय रहते सशंकित निज बुभुक्षित फौज से
तुम भोग हो हम भाव हैं तुम रोग हो हम राग हैं
तुम हो अभावाक्रांत हम इस जगत का अनुराग हैं
लेकिन समझ लेना न तुम हम शान्त संयत बुद्ध हैं
हम मुण्डमाली शिव कपाली कालिका का युद्ध हैं
श्रीरामचरित मानस की तरह बहुआयामी क्षेत्रों के द्वार खोलने वाली गीता का संदेश हमें अपने कर्तव्य का स्मरण कराता है
जब अर्जुन कहते हैं
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।।1.46।।
यदि मुझ शस्त्ररहित और प्रतिकार न करने वाले व्यक्ति को धृतराष्ट्र के ये शस्त्रधारी पुत्र युद्ध में मारें, तो भी वह मेरे लिये कल्याणकारी होगा।
और ऐसा कहकर
एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।1.47।।
शोक से उद्विग्न मन वाला अर्जुन बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गया।
तो भगवान् कृष्ण अर्जुन को आर्य -स्वभाव बताते हैं दुष्टता करने पर आर्य दुष्ट को आंखें दिखाना भी जानता है शत्रु को ताप देना वह बखूबी जानता है यही सनातन धर्म है जिस पर गीता आधारित है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को गीता इंगित करती है
तीसरे गाल और साध्वी ऋतम्भरा का क्या प्रसंग है 2 अक्टूबर के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा भैया प्रदीप जी का नाम क्यों लिया किसकी हत्या की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें