राम-राम रटु राम-राम सुनु, मनुवाँ सुवा सलोना रे।
तन हरियाले बदन सुलाले, बोल अमोल सुहौना रे।
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४९५ वां* सार -संक्षेप
स्थान :सरौंहां
आचार्य जी कहते हैं भगवान् श्रीराम का नाम केवल एक शब्दमात्र न होकर, दिव्य चेतना का सघन संप्रेषण है, जिसका प्रभाव वर्णनातीत एवं चमत्कृत कर देने वाला होता है। इस नाम का जप, साधक के अंतःकरण में सुप्त शक्तियों का जागरण करता है, जिससे उसमें आत्मबल, प्रज्ञा एवं विवेक की उद्भावना होने लगती है। यह नाम भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्रों में संतुलन स्थापित करने का माध्यम बनता है, जिससे साधक की चेतना क्रमशः परिष्कृत होती चली जाती है। अतः श्री राम नाम का स्मरण केवल धार्मिक क्रिया नहीं, अपितु आत्मविकास का दिव्य साधन है।
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
ध्रुव ने ग्लानि से हरि नाम को जपा और उसके प्रताप से अचल अनुपम स्थान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की । इसी प्रकार हनुमान ने पवित्र नाम का स्मरण करके राम को अपने वश में कर रखा है।
राम राम रमु ,राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
रामनाम-नवनेह-मेहको,मन! हठि होहि पपीहा ॥ १ ॥
इस प्रकार भगवान् राम के नाम का स्मरण करके हम अपनी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करें
भगवान् राम के कृत्य प्रेरित करने वाले हैं उन्होंने बहुत कुछ त्यागा किन्तु धनुष बाण नहीं त्यागे
कागर-कीर ज्यौं भूषन-चीर सरीर लस्यौ तजि नीर ज्यौं काई।
मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभाय सनेह सगाई॥
संग सुभामिनि भाई भलो, दिन द्वै जनु औध हुतै पहुनाई।
राजिव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई॥
हम भी भगवान् राम की तरह अपने धनुष बाण नहीं त्यागें
हम सदैव शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म की ही अनुभूति करें
हम युगभारती के कर्णधार ऐसा संकल्प करें कि हम अपने व्यक्तिगत शरीर संबंधी प्रयोजनों की पूर्ति के लिए कभी याचन नहीं करेंगे किन्तु यदि लोकहित, धर्मरक्षा या परमार्थ हेतु आवश्यकता होगी तो बिना किसी संकोच अथवा लज्जा के अपने कर्तव्य को निभाने हेतु तत्पर रहेंगे। ऐसे परमार्थ कार्य में याचन भी सम्मान का ही भाग बन जाता है। यदि हम इस अभ्यास में आएंगे तो समाज की सेवा करने में और अधिक समर्थ होंगे
मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज |
परमारथ के कारणे, मोहिं न आवै लाज |
-कबीर दास
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय गुप्त जी भैया अभय गुप्त जी भैया वीरेन्द्र जी के नाम क्यों लिए जानने के लिए सुनें