प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४९६ वां* सार -संक्षेप
बढ़े चलो बढ़े चलो !
कभी उदास हो नहीं
कभी निराश हो नहीं
कभी हताश हो नहीं
विरत प्रयास हो नहीं
कि श्रृंग पर चढ़े चलो || बढ़े चलो बढ़े चलो..
सुभाव को तजो नहीं
कुभाव को भजो नहीं
प्रभाव से हटो नहीं
अभाव से नटो नहीं
कि संगठन गढ़े चलो ll
बढ़े चलो बढ़े चलो..
यह सदाचार वेला हमारे अंतःकरण में सुप्त सामर्थ्य के उद्दीपन हेतु एक सुदृढ़ अधिष्ठाता है। यह केवल नैतिक अनुशासन की पुनर्स्थापना नहीं, अपितु हमारी अंतर्निहित शक्तियों की साक्षात् अनुभूति का एक प्रामाणिक साधन भी है। इस माध्यम से हम अपने भीतर समाहित दिव्य तत्त्व को स्पर्श कर, आत्मबोध एवं उत्तरदायित्व की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं
तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥
साधक सूर्यदेव (पूषन्) से निवेदन करता है..
हे पूषन्, आपके तेजस्वी, स्वर्णमय आवरण (हिरण्मय पात्र) ने सत्य के मुख को ढक रखा है। हम सफलता में इतने मग्न हो जाते हैं कि सत्य को देखना नहीं चाहते अब उस परम सत्य को देखने की मेरी जिज्ञासा है। आप कृपया उस यवनिका को हटा दें, ताकि मैं सत्यधर्म के पथ पर चलने हेतु उस ब्रह्मस्वरूप सत्य का दर्शन कर सकूं।
यहां "हिरण्मय पात्र" उस माया या अज्ञान का प्रतीक है जो परम सत्य को हमारी दृष्टि से ओझल कर देता है।
साधक, सूर्य को माध्यम बनाकर ब्रह्म से प्रार्थना करता है कि वह अपनी बाह्य प्रकाश-छाया को हटाकर अपने वास्तविक, सौम्य, कल्याणकारी स्वरूप को प्रकट करे, जिससे साधक उस परम पुरुष (ब्रह्म) का साक्षात्कार कर सके और अनुभव करे— *"वह मैं ही हूँ।"*
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी अधिवेशन की चर्चा की
कम समय में व्यवस्थित रूप से अपनी योजनाओं को प्रस्तुत करना स्वयं को तो शक्ति देता है अपनों को भी उत्साहित करता है इस अधिवेशन की तरह के कार्यक्रम हमें शक्ति सामर्थ्य बुद्धि विवेक विचार कौशल शान्ति संतोष देते हैं
अब हम इस अधिवेशन पर अपना ध्यान केन्द्रित करें
आचार्य जी ने बताया कि भैया प्रमोद पांडेय जी के पिता जी अब हमारे बीच में नहीं है
और
शुक्रवार को होने वाली किस बैठक की चर्चा हुई भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें