1.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५६ वां* सार -संक्षेप

 तप-तपस्या के सहारे

इन्द्र बनना तो सरल है।

स्वर्ग का ऐश्वर्य पाकर

मद भुलाना ही कठिन है ॥४॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 1 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५६ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३८


इन विचारों को सुनकर अपने जीवन को गढ़ने का उद्देश्य बनाएं 



अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।

राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं॥


पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहों।


 विनय- पत्रिका के इस पद में तुलसीदास जी अपने पूर्व जीवन की अज्ञानता और वर्तमान की जागरूकता का वर्णन करते हैं।वे कहते हैं कि अब तक वे संसार के भ्रम में डूबे थे, पर अब वह नहीं डूबेंगे। भगवान राम की कृपा से यह संसार रूपी अज्ञान की रात्रि समाप्त हो गई है और अब वे जाग गये हैं

उन्हें श्रीराम का नाम मिल गया है, जो एक सुंदर और मनोवांछित फल देने वाली रत्नस्वरूप वस्तु है। अब यह नाम उनके हृदय से कभी नहीं हटेगा।


नाम लेना  जैसे "राम" का नाम जपना, अपने आप में विशेष नहीं है। विशेषता तब है जब हम उस नाम के भीतर छिपे रहस्य और भाव को समझें। जब उस नाम के स्मरण से हमारे भीतर वह अनुभूति जाग्रत हो जाए, जो हमें आलोकित कर दे, तब ही उस नाम का जप सार्थक होता है। यदि हम  भगवान् राम  का नाम लें, तो उनके जीवन-आदर्शों त्याग, मर्यादा, कर्तव्य और शौर्य को भी अपने जीवन में उतारें — यही वास्तविक मानवता है। केवल जीने, खाने और सोने तक सीमित जीवन जीवत्व है, उससे ऊपर उठकर, उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना ही मनुष्यत्व है।

आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हमें आत्मबोध हो 

आत्म और परमात्म के सहयोग की अनुभूति शक्ति भक्ति विचार विश्वास है l

तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,

तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।

तू है महानद तुल्य तो मैं एक बूँद समान हूँ,

तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ ।


हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है राष्ट्र को वैभवशाली बनाना हमारा लक्ष्य है अखंड भारत हमारा दृष्टिगुण है l प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करना ही हम युग भारती के सदस्यों का उद्देश्य है l शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा हमारे आयाम हैं l 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया मलय जी भैया अक्षय जी भैया वीरेन्द्र जी के नाम क्यों लिए,  स्वर्णनगरी में सीतारामी धारण करने का क्या आशय है जानने के लिए सुनें