2.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी /द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५७ वां* सार -संक्षेप

 धनवंत कुलीन मलीन अपी। द्विज चिन्ह जनेउ उघार तपी॥

नहिं मान पुरान न बेदहि जो। हरि सेवक संत सही कलि सो॥4॥



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष एकादशी /द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 2 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५७ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३९

निः स्वार्थ भाव से सेवा करें


तुलसीदास जी भारतीय समाज का नेतृत्व करने वाले ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने भारतीय चिंतन और दर्शन को न केवल आत्मसात् किया, अपितु उसे अपने जीवन और साहित्य के माध्यम से समाज में स्थापित भी किया। वे केवल एक कवि नहीं, बल्कि एक समाजचिन्तक भी हैं, जिन्होंने अकबर के शासन से उत्पन्न  विकृतियों, संघर्षों और भ्रमों का समाधान अध्यात्म के माध्यम से प्रस्तुत किया।

उनकी वाणी में केवल भक्ति नहीं, बल्कि नीति, समाज सुधार और धर्म का समन्वय भी है। इसलिए वे केवल एक रचनाकार नहीं, सम्पूर्ण भारतीय समाज के जीवनमूल्यों और संस्कृति के संवाहक एवं मार्गदर्शक चिन्तक हैं। उत्तरकांड में कलियुग का वर्णन करते हुए वे कहते हैं 

कलियुग में धर्म के वास्तविक स्वरूप से विमुख होकर व्यक्ति केवल बाहरी पहचान और दिखावे में लगे रहेंगे। जो सच्चे भक्त होंगे, उन्हें उपेक्षित किया जाएगा। तुलसीदासजी इस प्रकार सामाजिक, धार्मिक और नैतिक पतन की ओर संकेत करते हैं


सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाषंड।

मान मोह मारादि मद ब्यापि रहे ब्रह्मंड॥101 क॥


हे पक्षीराज गरुड़जी! सुनिए कलियुग में कपट, हठ, दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान, मोह और मद ब्रह्माण्डभर में व्याप्त हो गए


प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।

जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥103 ख॥


धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं,सत्य सतयुग में दया त्रेता में तप द्वापर में और कलियुग में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी  दिया जाए वह दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है॥


दान में मोह मद आदि विकार नहीं होने चाहिए दान के कारण यशस्विता अर्जित नहीं करनी चाहिए ऐसा दान अन्यथा दिखावा हो जाता है दान के कई प्रकार हैं विद्या,सेवा, धन आदि 

जिसको देने के पश्चात् कोई इच्छा न हो 


आज हम स्वास्थ्य शिविर में सेवा का दान करने आ रहे हैं इस सेवा में अपने मन से विकारों को हटा दें

निःस्वार्थ भाव से सेवा करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया 

संसार का प्रत्येक व्यक्ति यशस्वी होना चाहता है अध्यात्म में प्रवेश करें तो प्रशंसा की चाह उस परमेश्वर की इच्छा का वह तत्त्व है जिसके कारण वह सृष्टि की संरचना करता है

भैया आलोक वाजपेयी जी भैया अनुराग वाजपेयी जी भैया प्रवीण भागवत जी भैया विवेक भागवत जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें