" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५८४ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६६
दिनचर्या बनाएं मासिकचर्या वार्षिकचर्या बनाएं सुस्पष्ट लक्ष्य लेकर चलें
जो प्राप्त हो रहा है उसका आनन्द मनाएं और जो प्राप्त नहीं हो पा रहा है उसके लिए निश्चिन्तता धारण करें
आचार्य जी निरन्तर हमें आत्मानन्द की प्राप्ति तथा जीवन में शक्तिसम्पन्नता के संचार हेतु प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है। हमारा कर्तव्य है कि हम उनके द्वारा प्रदत्त प्रेरणास्पद वचनों का श्रवण कर, उन्हें आत्मसात् करें।
जब हम इन उद्बोधनों को श्रद्धापूर्वक विश्वास पूर्वक ग्रहण करेंगे, तब हमारे अन्तःकरण में निहित ब्रह्मतत्त्व रामतत्त्व सक्रिय हो सकता है। यह तत्त्व आत्मबोध के रूप में प्रकट होकर हमें न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत करेगा, अपितु जीवन में स्थायी आनन्द का अनुभव भी कराएगा l
विशेषतः प्रातःकाल, जब यह तत्त्व जाग्रत रहेगा, तब हमारे मन, बुद्धि और चित्त में समरसता बनी रहेगी। इस अवस्था में हम संसार के विविध विक्षेपों से अछूते रहकर, दिव्य चेतना का अनुभव कर सकते हैं
अतः यह आवश्यक है कि हम इन प्रेरणाओं को नियमित प्राप्त करें और आत्मविकास की दिशा में अग्रसर हों
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा राजबली पांडेय कृत हिन्दू धर्मकोश की चर्चा में क्या कहा, भैया पङ्कज जी भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ, भूमि जल और अग्नि का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने सर्जना और विलोपन में सूक्ष्म और स्थूल को कैसे अनुस्यूत किया , मोदीत्व के भाव से आवेशित होने पर कौन से कार्य हो सकेंगे जानने के लिए सुनें