1.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५८६ वां* सार -संक्षेप

 भुजदंडों में बल करतल पर कर्म बिराजे 

यह तन आजीवन रग रग में पौरुष साजे

सजे भाव में देशभक्ति का अनुपम उत्सव 

कण कण में उत्साह सुधा का सागर गाजे...



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 1 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५८६ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६८

इन सदाचार वेलाओं के तत्त्वों को समझने की चेष्टा करें 



मनुष्य का जीवन अमूल्य है अमूल्य का अर्थ है जिसका कोई मोल लगा ही नहीं सकता l मनुष्यत्व अद्भुत है l परमपिता परमेश्वर के मानस में जब मनुष्यत्व जाग्रत होता है तो कहता है एकोऽहं बहुस्याम् l

वह परमेश्वर वह ब्रह्म जो निराकार है, वह ही भक्तों की कृपा के लिए सगुण होकर श्रीराम रूप में अवतरित होता है 


उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥

सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥

राम ब्रह्म हैं लक्ष्मण जीव हैं और बीच में माया हैं जब ब्रह्म और जीव माया से अनुस्यूत होते हैं तभी संसार निर्मित होता है और जब तीनों का सामञ्जस्य होता है तभी संसार का तत्त्व सत्त्व ज्ञात भी होता है और आनन्द भी आता है यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है


भगवान् राम का जीवन समग्र रूप से लोकमंगलकारी आदर्शों की प्रतिमूर्ति है। उनके जीवन का प्रत्येक कण, प्रत्येक क्षण धर्म, मर्यादा, संयम, करुणा, शौर्य और सत्य की दिव्य गाथा से ओतप्रोत है। वे मानवता के चरम उत्कर्ष का प्रतीक हैं। स्थान-स्थान पर उन्हें यशस्विता प्राप्त हुई किन्तु उनके मन में अहंकार कभी नहीं आया l परिस्थितियां भांपकर आदेशों को सहज रूप से स्वीकारते रहे l

जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥

जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥


 बाल्यकाल से लेकर राज्यत्याग, वनगमन, रावणवध और राज्याभिषेक तक उनका सम्पूर्ण जीवन मर्यादाओं की सीमाओं में रहते हुए अवर्णनीय पुरुषोत्तमत्व का दिग्दर्शन कराता है।

भगवान् राम का जीवन न केवल भावात्मक श्रद्धा का विषय है, अपितु व्यावहारिक अनुकरणीयता का प्रतीक भी है। उनका जीवन एक जीवित ग्रन्थ की भाँति है, जिसका प्रत्येक पृष्ठ जीवन साधना का पथ बताता है।


जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी॥

ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे॥3॥



इसके अतिरिक्त रामलीला  क्या है अदीनत्व क्या है अखंड भारत हमारे लिए क्या है  विश्वामित्र राष्ट्र के हितैषी कैसे हैं जानने के लिए सुनें