प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५८७ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६९
जिस पद पर आप हैं उसकी प्रतिष्ठा का सदैव ध्यान रखें
भगवान् राम का व्यक्तित्व अत्यन्त व्यापक, बहुआयामी और आदर्शों से परिपूर्ण है। वे जीवन के प्रत्येक पक्ष में एक महान् उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने रघुकुल की मर्यादा का पालन करते हुए प्रजावत्सल, धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय शासन दिया। उनका राजधर्म इतना उच्च था कि आज भी रामराज्य को आदर्श शासन-प्रणाली के रूप में स्मरण किया जाता है। उन्होंने पिता के वचन की मर्यादा रखते हुए राजसिंहासन का परित्याग कर वर्षों तक वनवास का कठोर जीवन जिया उनका जीवन भोग से नहीं, त्याग और तप से प्रकाशित हुआ।वे वनवास काल में विभिन्न ऋषियों के आश्रमों सहित अनेक स्थानों में धर्म-प्रसार, संवाद और प्रेरणा के स्रोत बने। उन्होंने अन्याय, अत्याचार और अधर्म के विरुद्ध युद्ध किया उनका प्रत्येक निर्णय विवेकपूर्ण, यथार्थवादी और धर्मसम्मत रहा। वे नीति, मर्यादा और सत्य के गहन ज्ञाता थे।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस सहित अपने अनेक ग्रन्थों में यह भाव स्पष्ट किया है कि भगवान् राम भगवान् विष्णु के अवतार नहीं, अपितु स्वयं परम ब्रह्म परमात्मा के पूर्ण स्वरूप हैं।
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥1॥
उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥
सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥
आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥
उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥
भगवान् राम का अवतरण उस समय हुआ जब संसार में अधर्म, अन्याय और अत्याचार अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच चुके थे। उस युग में जो शक्तिशाली योद्धा थे, वे आत्ममुग्ध हो चुके थे और समाज की उपेक्षा कर रहे थे। जैसे कि राजा दशरथ और जनक l वे किसी न किसी रूप में समाज से विमुख होकर व्यक्तिगत मोक्ष या आत्मकल्याण की साधना में लीन थे।
ऐसे समय में भगवान् राम ने अवतरित होकर यह प्रतिपादित किया कि केवल आत्मकल्याण पर्याप्त नहीं, अपितु समाज की रक्षा, धर्म की पुनःस्थापना और मर्यादा के पालन हेतु पुरुषार्थ, पराक्रम और अध्यात्म का संगठित समन्वय आवश्यक है उनका जीवन यही सिखाता है कि धर्म एकांत साधना में नहीं, अपितु समाज के लिए समर्पित कर्म में प्रकट होता है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से स्पष्ट किया कि वह अध्यात्म, जो पराक्रम से रहित है, अधूरा है। अर्थात् शौर्य -प्रमंडित अध्यात्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है l
भगवान् राम की आवश्यकता इस कारण थी कि रावण वरदानी और अभिशप्त दोनों था इस विषय को आचार्य जी ने कैसे स्पष्ट किया राम का रामत्व कैसे देश में व्याप्त है भारत का स्वभाव क्या है
भैया अभिषेक जी, भैया सिद्धनाथ गुप्त जी, भैया मनीष कृष्णा जी, भैया पंकज श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ, हमारे विद्यालय के आचार्यों से हमारा आत्मीय सम्बन्ध भारत-भक्ति की भूमिका कैसे थी जानने के लिए सुनें