वागीश आचार्य श्री ओम शंकर जी प्रतिदिन सदाचार- वेला का प्रारम्भ अवतरणिका से करते समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम भगवान् संकटमोचन और देवी सनातनी का नाम लेते हैं और इसके पश्चात् तो सान्सारिक प्रपञ्चों से दूर हमें अनुक्षण अध्यात्म-वित्ति, औपनिषदिक ज्ञान और प्रेरणास्पद संस्मरणों से परिपूर्ण ऐसा मनीषितानुरूप अत्यन्त पावन सुरम्य वातावरण मिलता है जिसका वर्णन करना संभव नहीं है
आचार्य जी का कहना है यह सब सुनकर हम चिन्तन अवश्य करें कि हमारे अन्दर क्या परिवर्तन आ रहा है इसी भूमिका के साथ प्रस्तुत है आज दिनाङ्क 22/09/2021 का व्याहार
आचार्य जी ने कल से प्रारम्भ हुए पितृपक्ष में जल -दान का महत्त्व बताते हुए कहा कि भौतिक विज्ञान की पहुंच संसारेतर नहीं है l
प्रश्नोपनिषद् में
पञ्चपादं पितरं द्वादशाकृतिं दिव आहुः परे अर्धे पुरीषिणम्।
अथेमे अन्य उ परे विचक्षणं सप्तचक्रे षडर आहुरर्पितमिति ll
की व्याख्या की
आचार्य जी ने संत नरेन्द्रगिरि की चर्चा भी की
घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय।
‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥
गृहस्थ आश्रम में हम युग भारती के सदस्य तपोवृत्ति के साथ अवश्य ही रह सकते हैं
इसके अतिरिक्त
31/07/2021 को आचार्य जी ने भगवान् शङ्कराचार्य जी से संबन्धित जो प्रसंग बताया था उसे आज दोहराया