यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।18.78।
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुषधारी अर्जुन हैं, वहाँ ही श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है -- ऐसा मेरा मत है।
प्रस्तुत है तेजस्वत् त्रपिष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/12/2021 का सदाचार संप्रेषण
मनुष्य जीवन प्रयासों (कुछ सायास कुछ अनायास )की एक प्रयोगशाला है
यह सदाचार संप्रेषण अपने विकारों को दूर करने की एक उत्तम व्यवस्था है
क्योंकि हम सात्विक पथ पर चलते हुए बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने का मन में एक भाव धारण किये हुए हैं तो हमें ईर्ष्या कुण्ठा कलह जो सब दुःख हैं इनसे बचना चाहिए
बहुत सारे सांसारिक भयों के मध्य निर्भय होकर चलने का भाव हमारे ग्रन्थों में मिलता है
महाभारत के भीष्म पर्व में भी निर्भय होकर चलने का भाव मिलता है
महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु, जो ज्ञान का आधार और शक्ति के पुञ्ज हैं, ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था।
हमारे यहां की चिन्तन व्यवस्था बहुत गहन है
हमें तो गर्व करना चाहिए कि हमारे यहां बहुत सारे ग्रन्थ, शब्दों के बहुत सारे अर्थ, भाषा में बहुत सारे अक्षर व्यञ्जन शब्द उच्च कोटि का व्याकरण है वैविध्य को व्यवस्थित रूप से रखना कम आश्चर्य की बात नहीं
आचार्य जी ने कहा हम लोग गीता मानस का नियमित अध्ययन करें
सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति: |
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् || 10||
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव।।3.1।।
को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने कहा युद्ध भी एक कर्म है यज्ञ हवन भी कर्म है शान्ति और संघर्ष मनुष्य के विवेक पर आधारित हैं
हमारा कर्म क्या है धर्म क्या है इस पर विचार करें समय पर कठोर हों समय पर मृदु हों
इसके अतिरिक्त बिजली से इलाज का क्या आशय है
भैंस की भाषा को क्या हम श्रेष्ठ भाषा कहेंगे किसने कहा
कौन दो सहपाठी आमने सामने आ गये? आदि जानने के लिए सुनें