19.12.21

दिनांक 19/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

 

(ईश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करे। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। इस तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।)



प्रस्तुत है सुचिन्तितचिन्तिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी हम लोगों के सम्मुख ऐसे विषय रखने का प्रयास करते हैं जो प्रायः हमारी दृष्टि में नहीं आते

हम लोग सुनते रहते हैं कि वह वामपन्थी है वह दक्षिणपन्थी है इसी तरह  हमारे यहां पूजा पद्धति में भी वाम मार्ग है

हमारे यहां सारा सृष्टि संचालन यज्ञीय विधि विधान से है यज्ञीय विधि विधान में पूजा भी शामिल है

यज्ञ हवन पूजन हमारे विधिविधान का अङ्ग हैं

शाक्तों की पद्धति वाम मार्ग है (शाक्त =शक्ति के उपासक )(जैसे राम कृष्ण परमहंस शक्ति अर्थात्  दुर्गा के उपासक थे )

शाक्त, शैव, वैष्णव आदि के अलग अलग विधि विधान हैं और विकार सब में आते हैं क्योंकि संसार से इतर तत्त्व है और संसार में जो कुछ है वो मायामय तथ्य है

शाक्त मतों में एक सरल मार्ग (दक्षिण )है दूसरा मधुर (वाम )मार्ग है

पहला वैदिकतान्त्रिक दूसरा अवैदिकतान्त्रिक

इसी वाम मार्ग में कई विकार आ गये तो यह लांछित हो गया

आगम अर्थात् तन्त्र शास्त्र के ग्रंथों में इसका विस्तार से वर्णन है

विष्णु पुराण के दूसरे खंड के चौथे अध्याय के अनुसार शाकद्वीपी ब्राह्मणों का उपनाम मग था।

पूर्वकाल में सीथिया या ईरान के पुरोहित 'मगी' कहलाते थे।

भविष्य पुराण के ब्राह्मपर्व में कहा गया है कि कृष्ण के पुत्र कुष्ठरोगी साम्ब, सूर्य की उपासना से ठीक हुए थे।

फिर कृतज्ञता प्रकट करने हेतु उन्होंने मुल्तान में एक सूर्य मन्दिर बनवाया।

नारद जी की सलाह से उन्होंने शकद्वीप की यात्रा की और वहाँ से सूर्यमन्दिर में पूजा करने हेतु वे मग पुरोहित ले आये। तब से यह नियम बनाया गया कि सूर्यप्रतिमा की स्थापना एवं पूजा मग पुरोहितों द्वारा ही होनी चाहिए।

ऐसा लगता है मगध में आर्यों की शाखा मग रहती थी

भारत संपूर्ण विश्व का आधार केन्द्र है तो यह अतिशयोक्ति नहीं है किस विचार को किस तरह काटना है इसके लिए बहुत अध्ययन की आवश्यकता है

अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन भविष्य में करने के लिए न सोचें कि दायित्वों से मुक्त हो जाएं तो करेंगे साथ साथ करें

विद्यालय प्रबन्धकारिणी समिति के किस उपाध्यक्ष ने उचित गुरु के अभाव में तन्त्र मार्ग को सीखने के कारण अपनी स्मृति खो दी थी आदि जानने के लिए सुनें