प्रस्तुत है मञ्जुगिर् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।।
कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ।।
भर्तृहरि
समय कभी रुकता नहीं यह चलता रहता है जैसे समुद्र चलायमान है समुद्र का स्वभाव है लहराते रहना समय का स्वभाव है संचरित होते रहना
समय के हिसाब से हमारा शरीर हमारी भौतिक स्थिति परिवर्तित होती रहती है पशु पक्षी सब चल रहे हैं इस बात की जिज्ञासा कि ये क्यों चल रहे हैं ये कौन हैं कहां से आये हैं हमारे अध्यात्म के द्वार खुलने लगते हैं
लेकिन जिज्ञासा स्थायी होनी चाहिये
मनुष्य में आध्यात्मिकता भौतिक जगत से अलगाव के उपरान्त ही उपजती है।
अध्यात्म एक गूढ़ विषय है
यह अनुभूति का विषय है
सामान्य व्यक्ति को यह असत्य ही लगेगा कि हनुमान जी ने सूर्य निगल लिया था लेकिन यदि हम योगमार्ग में जाने के बाद सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा की अनुभूति भीतर करने का अभ्यास कर लेते हैं तो हमें उसकी ऊष्मा की अनुभूति होने लगती है
हमारे यहां कहा गया है
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ॥
चित्त अर्थात् अन्त:करण की वृत्तियों का निरोध सर्वथा रुक जाना योग है ।
यह योगमार्ग एक स्थान पर पहुंचाने वाला है अध्यात्म में रुचि रखने वाले हम भारतीयों को अनुभव होता है कि परमात्म का अंश लेकर जो आते हैं वे वास्तव में परमात्म के अंश की अनुभूति करते हुए रहते हैं
तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्। नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुङ्गवम्।। 1।।
वाल्मीकि के मन में आया कि मैं किसी के बारे में लिखूं जिसमें सोलह गुण हों तो नारद से पूछते हैं
को न्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान्। धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः।। 2।।
चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः। विद्वान् कः कः समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शनः।। 3।।
तो नारद कहते हैं
इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः। नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी।। 8।।
बुद्धिमान् नीतिमान् वाग्ग्मी श्रीमाञ्छत्रुनिबर्हणः। विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवो महाहनुः ।। 9।l
महोरस्को महेष्वासो गूढजत्रुररिन्दमः। आजानुबाहुः सुशिराः सुललाटः सुविक्रमः।। 10।।
समः समविभक्ताङ्गः स्निग्धवर्ण ः प्रतापवान् । पीनवक्षा विशालाक्षो लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः।। 11।
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आचार्य जी नेआठवें से अठारहवें छंद तक पढ़ने का परामर्श दिया ये छंद प्रभु राम के गुणों का वर्णन करते हैं
यह महापुरुषत्व ही वृद्धि करता करता ईश्वरत्व हो जाता है स्वयं परमात्मा हो जाता है न मनुष्य के पतन की सीमा है न विकास की
रशिया यूक्रेन युद्ध की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने महाभारत की भी चर्चा की संसार में सृजन और प्रलय का क्रम चलता रहता है