.जाति पाँति पूछै ना कोई।
हरि को भजै सो हरि का होई।
प्रस्तुत है अञ्जस आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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जीवन एक निबन्ध है जो निबंध लेखक इस निबन्धात्मक जीवन को भूमिका से लेकर उपसंहार तक बहुत अच्छी तरह से लिख देता है उसे परीक्षक अच्छे अंक दे देता है और जो विद्यार्थी उस निबन्ध को अच्छी तरह से पढ़ लेता है उसे भी अच्छे अंक मिल जाते हैं
नित्य प्रातःकाल जागकर हम दिनभर के जीवन की भूमिका लिखते हैं मध्याह्न तक उसे शीर्ष पर पहुंचाकर रात्रि आते आते उपसंहार लिखने लगते हैं अध्यात्म की भाषा में यह नित्य प्रलय है
अनुभव की बात है कि हम सब के भीतर परमात्मा विद्यमान है और यदि ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास करें तो लगता है सब कुछ अवतरित है
बीच बीच में ऐसे व्यक्तित्व आ जाते हैं जिनमें इतना शक्ति सामर्थ्य होता है कि लगता है स्वयं वो ही परमात्मा हैं
हमारे पास जितना धन है हम यदि उससे संतुष्ट हैं तो हम लोभ मोह मद मत्सर से दूर रहेंगे
और ऐसा भी हो सकता है अपार धन होने पर भी हम संतुष्ट न रहें और परेशान रहें
भौतिक दृष्टि से सर्वत्यागी, आध्यात्मिक दृष्टि से महासंग्रही, विचारक, संत, भक्त रामानुजाचार्य दक्षिण में जन्मे थे और परम्परा देते हुए रामानंदाचार्य तक आये
वैष्णव भक्तिधारा के महान संत रामानन्दाचार्य ने उत्तर भारत में वैष्णव सम्प्रदाय को पुनर्गठित किया और वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान वापस दिलाया। स्वामी रामानंदाचार्य का जन्म सन् 1299 में माघ माह की कृष्ण सप्तमी को हुआ था।
आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार के बाद उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्यजी से दीक्षा प्राप्त की।
वे संत अनंतानंद,संत सुखानंद, सुरासुरानंद, नरहरीयानंद, योगानंद, पीपानंद, संत कबीरदास, संत सेजान्हावी, संत धन्ना, संत रविदास, पद्मावती और संत सुरसरी के गुरु थे।
उनके काल में मुस्लिम बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया था और अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंदकर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट दे दी ।
रमानन्दाचार्य, कबीर, रैदास, तुलसीदास आदि ने जीवन के निबन्धों को ऐसा लिखा कि उनको जांचने वाला संसार में कोई नहीं मिला
भारत राष्ट्र परमात्मा की एक निर्मिति है और इस राष्ट्र को न नष्ट होने वाला वरदान मिला है
हम अपनी हरिभक्ति राष्ट्रभक्ति के रूप में देख सकते हैं हम अपना राग खोजें और यह राग इतना अधिक हो कि विराग में भी विस्मृत न हो
इसके अतिरिक्त आचार्य जी से मिलने कल कौन गया था जानने के लिये सुनें