प्रस्तुत है अर्ह्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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आयुर्वेद में कहा गया है
वैद्यानां शारदी माता पिता च कुसुमाकर: ।
यमदंष्ट्रा स्वसा प्रोक्ता हितभुक् मितभुक् रिपु: ॥
वसन्त ऋतु में रोगों की वृद्धि होती है वैद्यों हेतु शरद ऋतु माता की तरह और वसन्त ऋतु पिता की तरह है । ये दो ऋतुएं मृत्यु के देवता यमराज के दो दाँत है ऐसा मानना चाहिए । बचने के लिए एक ही उपाय है कि हितकर आहार और लघु आहार का सेवन किया जाये ।
जिनकी प्रकृति बाह्य प्रकृति से मेल खा जाती है वे लोग रोगों से संघर्ष कर लेते हैं अन्यथा वैद्य /DOCTOR की आवश्यकता होती है
मनुष्य जीवन में वाणी विधान बहुत शक्तिशाली है जिनको वाणी विधान बहुत अधिक सिद्ध हो जाता है उनके द्वारा उद्भूत भाव मन्त्र/ वरदानी स्वर कहलाते हैं
परमात्मा ने इस तरह की विलक्षण शक्ति मनुष्य को सौंपी है लेकिन माया के भ्रम में मनुष्य अपने को पहचान नहीं पाता इसलिये उस क्षरणधर्मा शरीर की सेवा करता है
भगवान् शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा की और सनातन धर्म एक बहुत विशाल मेडिकल कालेज की तरह है यहां उसी का इलाज सही ढंग से हो पाता है जो इसके विधि विधान को ठीक से समझता है
अज्ञानता में हम अपना गलत इलाज करा लेते हैं
इसी तरह हमारे मनोभावों का, विचारों का MEDICAL COLLEGE है
गीता से
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।18.14।।
को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने कहा मनुष्य की निर्मिति इस प्रकार होती है
इसी प्रकार पाँचरात्र मत जो वैष्णव सम्प्रदाय का ही एक रूप है, के अनुसार सृष्टि की सारी वस्तुएँ पुरुष, प्रकृति, स्वभाव, कर्म और देव से उत्पन्न होती हैं
इनको जानने की जिज्ञासा हमारे अन्दर हो ऐसा क्यों है वैसा क्यों है और इस तरह के प्रश्नों के हमें उत्तर मिलने लगें तो हमें समझना चाहिये कि मनुष्यत्व की प्राप्ति की अनुभूति हो रही है
गांव गांव घर घर में संयम शक्ति शौर्य पहुंचाना है ,
प्रेम युक्ति से संगठना कर विजयमंत्र दुहराना है ।।
जो भी जहां कहीं रहता हो,
जो कुछ भी निज-हित करता हो ,
थोड़ा समय देश-हित देकर
निज जीवन सरसाना है ।।
गांव गांव घर घर में ------
भारत मां हम सबकी मां है यह अनुभूति महत्वमयी ,
सेकुलर वाली तान निराली शुरू हुई है नयी नयी ।
भ्रम भय तर्क वितर्क वितंडा छोड़ लक्ष्य पर दृष्टि रहे ,
हिन्दुराष्ट्र के विजय घोष से नभ को आज गुंजाना है ।।
गांव गांव घर घर में-----
हिंदुदेश में हम-सब हिंदू जाति पांति आडंबर है ,
शक्ति संगठन के अभाव में दर दर उठा बवंडर है ,
प्रेम मंत्र संगठन तंत्र से बद्धमूल विश्वास करें ,
जनजीवन से भ्रामकता को जड़ से दूर भगाना है ।।
गांव गांव घर घर में ----
जहां किसी को भय भासित हो उसके दाएं खड़े रहें ,
लोभ लाभ के प्रति आजीवन सभी तरह से कड़े रहें ,
भारत सेव्य और हम सेवक यही भाव आजन्म रहे ,
यही भाव जन जन के मन में हम सबको पहुंचाना है ।।
गांव गांव घर घर में ------
भारत की संस्कृति में गौरव गरिमा समता ममता है ,
समय आ पड़े तो अपने बल दुष्ट-दलन की क्षमता है ,
हम अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु सदैव सतर्क रहें ,
यही विचार भाव जन जन को हमको आज सिखाना है ।।
गांव गांव घर घर में--------
✍️ ओमशंकर त्रिपाठी
इधर विचार हो रहा
उधर प्रहार हो रहा ,
सितार शान्ति के स्वरों का
तार-तार हो रहा ।
समय नहीं है एक पल,
सुशान्ति हो रही विकल,
जवान तू निकल निकल,
न आएगा कभी ये कल।
व्यथा कि शौर्य ही भ्रमित श्रमित उदार हो रहा।१।
इधर विचार हो रहा........
कथा व्यथामयी हुई
उदग्रता छुईमुई ,
मनस् भ्रमांध हो गया
बिसास बीज बो गया
विरुद्ध पाठ दीनहीनता का भार ढो रहा ।२।
इधर विचार------
कभी भ्रमांध दम्भ में
कभी शिथिल प्रबंध में,
कि, ईर्ष्या की आग में
कभी भ्रमे विराग में ।
इसी भ्रमांधता में सत्व आत्मबोध खो रहा ।३।
इधर विचार-----
कि, रक्तबीज बढ़ रहे
सुपृष्ठ देख चढ़ रहे ,
लगा रहे हिसाब हम
बढ़ा रहे हैं वे कदम,
विकर्म क्षुद्र स्वार्थ के विषाक्त बीज बो रहा ।४।
इधर विचार----
समय नहीं विचार का
यही समय प्रहार का,
सभी उठें कमर कसें
कि, एक भाव में बसें ,
दिखेगा यह कि शौर्य शक्ति का उजास हो रहा ।५।
इधर विचार-----
✍️ ओमशंकर त्रिपाठी
आचार्य जी चाहते हैं कि इस सदाचार वेला से हमारे अन्दर उत्साह और चिन्तन का संचार हो और सामाजिक धर्म और राष्ट्र धर्म को निभाने के लिये हमें क्या करना चाहिये इस पर भी हम लोग चिन्तन करें