मनभर लोहे का कवच पहन¸
कर एकलिंग को नमस्कार।
चल पड़ा वीर¸ चल पड़ी साथ
जो कुछ सेना थी लघु–अपार॥5॥
घन–घन–घन–घन–घन गरज उठे
रण–वाद्य सूरमा के आगे।
जागे पुश्तैनी साहस–बल
वीरत्व वीर–उर के जागे॥6॥
सैनिक राणा के रण जागे
राणा प्रताप के प्रण जागे।
जौहर के पावन क्षण जागे
मेवाड़–देश के व्रण जागे॥7॥
प्रस्तुत है अर्थार्थिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपने अपने गृहस्थी धर्म को निभाते हुए हम युग भारती के सदस्य भारतीय संस्कृति हिन्दू धर्म भारतीय चिन्तन को गौरवान्वित कर सकने वाले कार्य कर सकते हैं
कल साप्ताहिक विमर्श में शिक्षा और शिक्षा नीति पर चर्चा हुई
हमें समझना होगा कि मूल शिक्षा क्या है
शिक्षा संस्कार है और विद्या ज्ञान है वेदों में विद्या है शास्त्रों में शैक्षिक चिन्तन है
शास्त्र का अर्थ है शासन, आदेश,प्रशिक्षण
शास्त्र की उत्पत्ति का वर्णन मत्स्य पुराण में इस प्रकार है-
पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं बह्मणा स्मृतम्।
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कार्य अकार्य को शास्त्र का प्रमाण माना गया है
वेद एक पुरुष है ज्ञान का साक्षात् पुरुष
ज्ञान को हम भीतर की आंखों से देख सकते हैं
शिक्षा वेद की नासिका है छन्द वेद के पैर हैं
शुद्ध उच्चारण का शास्त्र है
क्योंकि हमारी जड़ों को काटकर शिक्षा थोपी गई इसलिये हमें अपनी शिक्षा पद्धति और ज्ञान गरिमा पर भरोसा नहीं रहा
संयोजित समायोजित व्यवस्थित समन्वित शिक्षा से ही शिक्षा का प्रभाव व्यक्तित्व पर होगा
शिक्षा के बहुत से पुराने ग्रंथ हैं महाभारत के शान्तिपर्व में शिक्षा का अंश है भारद्वाजशिक्षा (पुणे से प्रकाशित ) है इन सबका उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने पाणिनीय शिक्षा को पढ़ने का परामर्श दिया
हम लोग शिक्षा संग्रह को भी खोज सकते हैं
इन सबका अध्ययन कर अनुसंधान का काम करके हम लोग बहुत से लोगों का कल्याण कर सकते हैं
व्यवहार से अध्यात्म के सोपान चढ़ें स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलें
सही शिक्षा के लिये एक आन्दोलन चलना चाहिये